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तरह जाग्रत हो उठे। इन्द्र की प्राज्ञा से किसी देव ने घोषणा रूप नाटक का नान्दी रूप सुघोषा घण्टा बजाया है इसलिए इन्द्र की आज्ञा सूचक घोषणा अवश्य सुनना उचित है ऐसा सोचकर सभी देव मन लगाकर सुनने में तत्पर हो गए। घण्टे की आवाज बन्द होने पर इन्द्र के सेनापति मेघमन्द्र स्वर से इस प्रकार बोलने लगे-हे. सौधर्म स्वर्गवासी देवगण, मन लगाकर सुनो, स्वर्गपति इन्द्र पापको यह आदेश दे रहे हैं कि जम्बूद्वीप स्थित भरत खण्ड के अयोध्या नगर में जितशत्रु राजा की रानी विजया रानी के गर्भ में जगद्गुरु और विश्व पर कृपा करने वाले द्वितीय तीर्थङ्कर का विश्व के भाग्योदय से आज जन्म हुआ। निज प्रात्मा को पवित्र करने के लिए जन्माभिषेक हेतु परिवार सहित वहाँ जाना उचित है । अतः आप सब स्वऋद्धि और बल सहित उनके साथ जाने के लिए यहां एकत्र हो जाएँ। मेघ गर्जन से जैसे मयूर आनन्दित होता है उसी प्रकार घोषणा सुनकर सभी देव आनन्दित हो गए। उसी समय मानो स्वर्गीय प्रवहन हो ऐसे विमान में बैठकर आकाश समुद्र अतिक्रम करते हुए देवगण एक-एक कर इन्द्र के सम्मुख प्राकर उपस्थित हो गए।
(श्लोक २५९-२८०) __इन्द्र ने अपने पालक नामक अभियोगिक देव को स्वामी के निकट जाने के लिए विमान प्रस्तुत करो ऐसा आदेश दिया। तब उसने एक लक्ष योजन दीर्घ और प्रशस्त मानो द्वितीय जम्बूद्वीप हो ऐसा पांच सौ योजन ऊँचा एक विमान प्रस्तुत किया। उसके भीतर की रत्नमय दीवारों से मानो वह तरंगित प्रवाल समुद्र है, स्वर्ण कलश से मानो विकसित कमल समुद्र है, दीर्घ ध्वज वस्त्रों से मानो देह पर तिलक अंकित किया है विचित्र रत्न शिखरों से मानो उसने अनेक मुकुट धारण किए हैं, अनेक रत्न स्तम्भों से वह मानो लक्ष्मी ही हस्तिनियों के आलान स्तम्भ युक्त है और रमणीय पुतलियों से मानो वह द्वितीय अप्सराबों से युक्त है ऐसा लग रहा था। वह विमान ताल ग्रहण करने वाले नट की तरह किंकिणी जाल से मण्डित था, नक्षत्र सहित प्रकाश की तरह मुक्ता के स्वस्तिक से अंकित था और ईहामृग, अश्व, लता, मनुष्य, किन्नर, हस्ती, हंस, वनलता और पद्मलता के चित्रों से सज्जित था । महागिरि से उतरते समय विस्तृत हुई निर्झरिणी की तरंगों की तरह विमान के तीन प्रोर सोपान श्रेणियाँ थीं। सोपान