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प्रकाशकीय
अप्रतिम प्रतिभाधारक, कलिकाल-सर्वज्ञ, परमार्हत कुमारपालप्रतिबोधक, स्वनामधन्य श्री हेमचन्द्राचार्यरचित त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित का द्वितीय पर्व जिसमें द्वितीय तीर्थङ्कर श्री अजितनाथ भगवान् एवं द्वितीय चक्रवर्ती सगर का चरित गुफित है, प्राकृत भारती के पुष्प संख्या 77 के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है।
त्रिषष्टि अर्थात् तिरेसठ, शलाका - पुरुष अर्थात् सर्वोत्कृष्ट महापुरुष अथवा सृष्टि में उत्पन्न हुए या होने वाले जो सर्वश्रेष्ठ महापुरुष होते हैं वे शलाका पुरुष कहलाते हैं। इस कालचक्र के उत्सपिणी और अवसर्पिणी के प्रारकों में प्रत्येक काल में सर्वोच्च 63 पुरुषों की गणना की गई है, की जाती थी और की जाती रहेगी। इसी नियमानुसार इस अवसर्पिणी के 63 महापुरुष हुए हैं उनमें 24 तीर्थङ्कर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव और 9 बलदेवों की गणना की जाती है। इन्हीं 63 महापुरुषों के जीवनचरितों का सङ्कलन इस 'त्रिषष्टिशलाका-पुरुषचरित' के अन्तर्गत किया गया है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने इसे 10 पर्यों में विभक्त किया है जिनमें ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त महापुरुषों के जीवनचरित संगृहीत हैं । द्वितीय पर्व 6 सर्गों में विभक्त है जिसमें द्वितीय तीर्थङ्कर भगवान् अजितनाथ एवं चक्रवर्ती सागर का साङ्गोपाङ्ग जीवन गूथा गया है।