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________________ 26] 'आज रात्रि के अन्तिम प्रहर में प्रापकी भ्रातृ-वधू वैजयन्ती ने चौदह स्वप्नों को मुख में प्रवेश करते देखा है। वे ये हैं(१) गर्जन में दिग्गजों को भी जय करने वाला हस्ती, (२) उच्च स्कन्ध और उज्ज्वल प्राकृति वृषभ, (३) उच्च केशर युक्त व्यादितमुख केशरी, (४) दोनों ओर से दो हाथियों द्वारा अभिषिक्ता लक्ष्मी, (५) इन्द्र धनुष-सी पञ्चवर्णीय पुष्पमाला, (६) अमृत-कुण्ड-सा सम्पूर्ण मण्डलयुक्त चन्द्र, (७) समस्त विश्व को अपने प्रताप से एकत्र किया हो ऐसा प्रतापयुक्त सूर्य, (८) प्रलम्बित पताका युक्त दिव्य रत्नमय महाध्वज, (8) नवीन श्वेत कमल से जिसका मुख आच्छादित है ऐसा पूर्ण कुम्भ, (१०) मानो सहस्र चक्षु युक्त हो ऐसे विकसित कमलों से शोभित पद्म सरोवर, (११) अपनी तरंगों से मानो आकाश को प्लावित करना चाह रहा हो ऐसा समुद्र, (१२) एक दिव्य रत्नमय विचित्र विमान, (१३) मानो रत्नाचल के सार हों ऐसे प्रज्वलित कान्तियुक्त रत्नपुञ्ज, (१४)स्व-शिखा से पल्लवित कर रही हों ऐसी निर्धू म अग्नि। इन चौदह स्वप्नों को उसने देखा है। इसका फलाफल प्राप जानते हैं एवं उसका फल भी पाप ही को मिलेगा। (श्लोक ७१-८२) राजा बोले-'देवी विजया ने भी इन स्वप्नों को रात्रि के अन्तिम प्रहर में सुस्पष्ट देखा है । यद्यपि ये महास्वप्न साधारण रूप में भी महान् फलदायी हैं और चन्द्र किरणों की तरह प्रानन्ददायक हैं फिर भी स्वप्न विशेष के फलज्ञाता पण्डितों से इन स्वप्नों का फल पूछना उचित है। कारण, चन्द्रमा की कान्ति की तरह इन विद्वानों में भी पृथ्वीमण्डल को आनन्दित करने की शक्ति है।' (श्लोक ८३-८५) फिर प्रतिहारियों द्वारा ज्ञात कर मूर्तिमान रहस्यज्ञाता हों ऐसे नैमित्तिकगण राजा के निकट पाए। स्नान के कारण उनकी कान्ति निर्मल थी एवं उन्होंने स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहन रखे थे इसलिए वे पूर्णिमा के चन्द्र की कान्ति से आच्छादित तारों से लग रहे थे। मस्तक पर दुर्वांकुर धारण करने के कारण मानो मुकुट धारण कर रखा हो ऐसे एवं केशों में पुष्प रहने से हंस और कमल सहित नदी समूह हो ऐसे प्रतीत हो रहे थे। ललाट पर गोरोचन चर्ण का तिलक धारण करने के कारण वे अम्लान ज्ञान रूपी दीपशिखा से शोभित हो रहे थे । स्वल्प; किन्तु अमूल्य अलङ्कारों को
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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