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________________ 180] श्राकुष्ट करने के लिए भगीरथ ने दण्डरत्न को ग्रहण किया । प्रचण्ड बाहुबली भगीरथ ने गरजती हुई उस नदी को जिस प्रकार संडासी से माला खींची जाती है उसी भांति दण्डरत्न से खींचा। तदुपरान्त कुरु देश के मध्य से हस्तिनापुर के दक्षिण से कौशल देश के पश्चिम से, प्रयाग के उत्तर से, काशी व विन्ध्याचल के दक्षिण से और अंग व मगध के उत्तर से होकर आंधी जिस प्रकार तृरण को उड़ा देती है उसी प्रकार राह में प्राई नदियों को आकृष्ट करने वाली उस नदीको पूर्व समुद्र में ले जाकर गिरा दिया । उसी दिन से वह स्थान गङ्गासागर के नाम से प्रसिद्ध हुआ । भगीरथ ने गंगा को आकृष्ट कर समुद्र में डाला । इसलिए वह भगीरथी नाम से प्रसिद्ध हुई। राह में चलते समय गंगाजल से नागों के गृह विनष्ट हो रहे थे अतः वहाँ उन्होंने नागों के उद्देश्य से बलिदान दिया । भस्मीभूत सगर के पुत्रों की अस्थियों को गंगा का प्रवाह पूर्व सागर में ले आया यह देखकर भगीरथ ने विचार किया - यह खूब अच्छा हुप्रा कि मेरे पिता और पितृव्यों की अस्थियों को गंगा ने समुद्र में ला फेंका है। यदि ऐसा नहीं होता तो इन अस्थियों को गिद्ध आदि पक्षी चोंच द्वारा पवन से विक्षिप्त फूलों की तरह न जाने किस प्रपवित्र स्थान में ला डालते । वे ऐसा सोच ही रहे थे तभी जल के उत्पात से रक्षा पाए लोगों ने - तुम लोकरञ्जक हो, लोकरक्षक हो ऐसा कहते हुए बहुत देर तक उनकी प्रशंसा की। उन्होंने पिता और पितृव्यों की अस्थियां गंगा में डालीं इसीलिए लोग आज भी मृत व्यक्तियों की अस्थियों को गंगा में डालते हैं । कारण, महापुरुष जो प्राचरण करते हैं वही साधारण लोगों के लिए आचरणीय हो जाता है । (श्लोक ५७१-५७९) भगीरथ वहाँ से रथ में बैठकर लौट आए। अपने रथ के वेग से काँसे के पात्र की तरह पृथ्वी से शब्द कराते हुए वे जा रहे थे तब राह में कल्पवृक्ष की तरह स्थिर खड़े एक केवली को देखा । उन्हें देखकर वे रथ से उसी प्रकार आनन्दमना नीचे उतरे जैसे उदयगिरि से सूर्य नीचे उतरता है या आकाश से गरुड़ । उस चतुर और भक्त भगीरथ ने उनके निकट जाकर भक्तिपूर्वक वन्दना कर प्रदक्षिणा दी । फिर योग्य स्थान पर बैठ पूछा - भगवन्, मेरे पिता और पितृव्य किस कर्म के कारण एक साथ जलकर मर गए ? त्रिकालज्ञ और करुणा रस-सागर वे केवली भगवान् मधुर वाणी.
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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