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162] उसे दान दे ही रहे थे; किन्तु उसने क्रोधावेश में इसे ग्रहण नहीं किया। इसमें आपका क्या दोष है ? (श्लोक २६५-२७०)
___ इस बार वह ब्राह्मण के वेश में हाथों में उपहार लिए राजद्वार पर पाया। द्वारपाल ने उसके आने की खबर राजा को दी। द्वार पर प्रागत व्यक्ति की खबर देना तो द्वारपाल का कर्तव्य ही है। राजाज्ञा से सत्कार संबन्धित कार्य के अधिकारी सहित छड़ीदार उसे दरबार में ले प्राया। उसने राजा के सम्मुख खड़े रहकर हाथ ऊँचा कर आशीर्वादात्मक आर्यवेदों के मन्त्र पदक्रम से बोले । तदुपरान्त छड़ीदार द्वारा बताए प्रासन पर जा बैठा । राजा की कृपापूर्ण दृष्टि उसे देखने लगी। राजा ने पूछा-तुम कौन हो और यहां क्यों आए हो?
(श्लोक २७१-२७६) तब वह ब्राह्मणश्रेष्ठ बोला-हे राजन्, मैंने नैमित्तिक विद्या के साक्षात् अवतार हों ऐसे गुरु की उपासना कर यह विद्या प्राप्त की है। पाठ अधिकरणी ग्रन्थ, फलादेश ग्रन्थ, जातक और गणितक ग्रन्थ मुझे अपने नाम को तरह कण्ठस्थ हैं। हे राजा, मैं तपः सिद्ध मुनि की तरह भूत, भविष्य और वर्तमान की बातें आपको एकदम ठीक-ठीक बतला सकता हूँ।
(श्लोक २७६-२७९) राजा बोले-हे विप्र, वर्तमान के अल्प समय में जो कुछ होने वाला है वह बताओ ! कारण, अन्य को अपने ज्ञान का परिचय शीघ्रता से करवा देना ही ज्ञान का फल है। (श्लोक २८०)
__तब ब्राह्मण ने कहा-पाज से सातवें दिन समुद्र समस्त संसार को जलमय कर प्रलय कर देगा।
(श्लोक २८१) यह सुनकर राजा के मन में क्षोभ और विस्मय एक साथ उत्पन्न हुमा । अतः उन्होंने अन्य ज्योतिषियों की ओर देखा । राजा के भकुटि संकेत को समझकर ब्राह्मण की इस असम्भव बात पर ऋद्ध होकर ज्योतिषियों ने उपहास के स्वर में कहा-महाराज, लगता है, यह कोई नवीन ज्योतिषी प्रकट हुआ है या फिर इसके ज्योतिष शास्त्र की ही नवीन सृष्टि हुई है जिसके परिणामस्वरूप यह सुनने में दुःखदायी ऐसा वाक्य बोल रहा है कि समस्त जगत् जलमय हो जाएगा; किन्तु क्या ग्रह-नक्षत्र तारादि भी नवीन सृष्ट हुए हैं जिनकी वक्रगति के आधार पर यह इस भाँति बोल रहा है ? जितने भी ज्योतिष शास्त्र हैं वे सर्वज्ञों के शिष्य गणधरों द्वारा रचित द्वादशांगी पर आधारित हैं। उनके अनुसार विचार करने