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के हो ? श्रोत्रीय, पौराणिक स्मार्त हो या ज्योतिषी ? तीन विद्याओं के ज्ञाता हो? धनुकाचार्य हो ? ढाल-तलवार के व्यवहार में पट हो? बी का प्रयोग कर सकते हो? तुम क्या शल्य जातीय प्रस्त्रों में कुशल हो? क्या गदा युद्ध जानते हो? क्या तुम दण्ड युद्ध के पण्डित हो ? क्या तुम शक्ति चलाने में सशक्त हो? क्या मूसल शास्त्र में दक्ष हो ? हल शास्त्र में क्या तुम अधिक चतुर हो ? चक्र चलाने में क्या तुम पराक्रमी हो ? छरिका युद्ध में क्या तुम निपुण हो? क्या अश्व-विद्या के ज्ञाता हो ? क्या हस्ती को शिक्षा देने में समर्थ हो? क्या तुम व्यूह-रचना के ज्ञाता प्राचार्य हो? क्या व्यूह रचना को तोड़ने में भी कुशल हो ? रथादि की रचना जानते हो? क्या रथ चला सकते हो ? क्या सोना, रूपा आदि धातों को गढ़ना जानते हो? चैत्य, प्रासाद, अट्टालिका आदि के निर्माण में क्या तुम निपुण हो ? क्या विचित्र यन्त्र और दुर्गादि के निर्माण में चतुर हो ? किसी सांयात्रिक के क्या तुम कुमार हो? या किसी सार्थवाह के पुत्र ? स्वर्णकार हो या मरिणकार हो? वीणावादन में प्रवीण हो या वेणु बजाने में ? ढोल बजाने में चतुर हो या तबला बजाने में ? वाणी के क्या तुम अभिनेता हो ? गायन शिक्षक हो ? सूत्रधार हो ? नट के नायक हो या भाट हो या नृत्याचार्य हो ? संशप्तक हो या चारण ? समस्त लिपियों के ज्ञाता हो या चित्रकार ? मिट्टी का काम जानते हो? या अन्य किसी प्रकार के कारीगर हो ? नदी, ह्रद, समुद्र अतिक्रम करने का क्या कभी प्रयास किया है ? या माया, इन्द्रजाल एवं अन्य किसी कपट प्रयोग में तुम चतुर हो ?
(श्लोक २३१-२४५) इस प्रकार प्रादरपूर्वक जब राजा ने उससे पूछा तो उसने नमस्कार कर राजा से कहा-राजन्, जैसे जल का प्राधार समुद्र है, तेज का आधार सूर्य है उसी प्रकार समस्त पात्रों के आधार प्राप हैं। मैं वेद शास्त्र-ज्ञाताओं का सहाध्ययी हूं धनुर्वेदादिज्ञाता, प्राचार्य या उससे भी अधिक हूँ। समस्त कारीगरों में मैं प्रत्यक्ष विश्वकर्मा हैं, गीतादि कलाओं में मानो पुरुष रूप में साक्षात् सरस्वती हैं । रत्नादि के व्यवहार में मैं जौहरियों के लिए पितृतुल्य हूँ। वाचालता में चारण-भाटों का मैं उपाध्याय जैसा हूं। नदी आदि को पार करने में मैं दक्ष हूं; किन्तु इस समय इन्द्रजाल विद्या