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________________ [5 है उन्हीं समस्त पारिवारिक लोगों के सम्मुख ही काल आकर भिखारी-से असहाय जीव को पकड़ ले जाता है। नरकगति प्राप्त जीव वहाँ अनन्त दुःखों को प्राप्त करता है। कारण कर्ज की तरह कर्म भी जन्म-जन्मान्तरों तक प्राणी के साथ ही जाता रहता है। यह मेरी मां है, यह मेरी पत्नी, यह मेरा पुत्र, इस भांति की जो ममता भरी बुद्धि है वह मिथ्या है। क्यों कि जब यह देह ही अपनी नहीं है तब अन्य का तो कहना ही क्या ? भिन्न-भिन्न गति से पाए माता-पिता आदि की अवस्था तो उन पक्षियों जैसी है जो पृथकपृथक दिशानों से आकर एक डाल पर प्राश्रय लेते हैं या उन पथिकों की तरह है जो विभिन्न दिशामों से आकर एक सराय में रात्रिवास कर सबेरा होते ही अलग-अलग स्थानों पर जाने की राह पकड़ लेते हैं। (श्लोक ४३-६३) माता-पिता भी इसी प्रकार विभिन्न गतियों में गमन करते हैं। कुएं के जल-यन्त्र की भांति आवागमनमय इस संसार में प्राणियों का अपना कोई नहीं है। इसीलिए कुटम्बादि जो त्याग करने योग्य है प्रारम्भ से ही उनका परित्याग और आत्महित का प्रयास करना चाहिए। कहा भी गया है आत्महित से भ्रष्ट होने का नाम ही मूर्खता है। निर्वाण लक्षण युक्त यह प्रात्महित एकान्त और अनेकों सुखप्रदानकारी है। यह मूल और उत्तर गुणों द्वारा सूर्य किरणों की भांति प्रकट होता है। (श्लोक ६४-६६) जिस समय राजा यह चिन्तन कर रहे थे उसी समय चिन्तामणि रत्न-से अरिंदम नामक सूरि महाराज उद्यान में पधारे। उनके आगमन का संवाद सुनकर राजा को अमृत पान-सा प्रानन्द हमा। अतः वे मयूर पंखों के छत्रों से सारे प्राकाश मानो मेघयुक्त कर रहे हों इस प्रकार सूरि महाराज को वन्दन करने गए । लक्ष्मी देवी के दोनों कटाक्ष हों इस प्रकार उनके दोनों ओर दो चँवर डुलवाने लगे। स्वर्ण कवच युक्त होने से मानो सुवर्ण पंख लगे हों एवं गति द्वारा पवन को भी परास्त करने वाले वेगवान प्रश्वों से वे समस्त दिशाओं को पूरित करने लगे : मानो अंजनांचल के चलमान शिखर हों इस प्रकार वहदाकार हस्तियों के भार से पृथ्वी को झुकाने लगे । अपने स्वामी के मनोभावों को ज्ञात कर जैसे उन्हें मनःपर्याय ज्ञान प्राप्त हो गया हो ऐसे सामन्त राजा भक्ति से प्रेरित
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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