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________________ (121 एवं अष्टम तप का पारणा किया। तदुपरान्त स्वप्रसाद रूपी प्रासाद में स्वर्ण-कलश की तरह अष्टाह्निका महोत्सव किया । (श्लोक १३६-१४४) चक्र के पीछे चलते हुए चक्री, तमिस्रा गुहा के निकट पहुंचे और वहां छावनी डालकर सिंह की भांति अवस्थान करने लगे। वहां उन्होंने कृतमाल देव को स्मरण कर अष्टम तप किया। महान् पुरुष जो कार्य करणीय होता है उसकी अवहेलना नहीं करते । अष्टम तप फलित हुआ। कृतमाल देव का पासन कम्पित हुना। कहा भी गया है-ऐसे पराक्रमी पुरुष जब उद्योग करते हैं तो पर्वत भी काँप उठता है । कृतमाल देव ने अवधिज्ञान से चक्री का आगमन जाना और स्वामी के निकट जिस प्रकार जाते हैं उसी प्रकार पाकर आकाश में अवस्थित हुए। उन्होंने रमणियों के योग्य चतुर्दश तिलक, अच्छे वस्त्र, गन्धचूर्ण, माल्य इत्यादि वस्तुएं चक्री को उपहार में दी और चक्री की जयकार करते हुए उनकी सेवा स्वीकृत की । मनुष्यों की तरह देवों के लिए भी चक्रवर्ती सेव्य होते हैं। चकवर्ती ने उनसे सस्नेह वार्तालाप कर उन्हें विदा कर परिवार सहित अष्टम तप का पारणा किया। वहाँ सगर राजा ने पादर. पूर्वक कृतमाल देव का अष्टाह्निका महोत्सव किया। कारण, यह कार्य देवों को प्रीतिदायक है। (श्लोक १४५-१५२) अष्टाह्निका महोत्सव पूर्ण हो जाने पर चकवर्ती ने पश्चिम दिशा के सिन्धू निष्कट को जय करने को सेनापतिरत्न को आदेश दिया। सेनापति रत्न ने मस्तक झुकाकर पुष्पमाल्य की भाँति उस आज्ञा को स्वीकार कर लिया। फिर वे हस्तीरत्न पर आरोहण कर चतुरंगिणी सेना सहित सिन्धु प्रवाह के निकट पाए। अपने उग्रतेज से वे भारतवर्ष में इस प्रकार प्रसिद्ध थे मानो वे इन्द्र या सूर्य हों। वे म्लेच्छों की सारी भाषाओं और लिपियों को जानते थे । वे सरस्वतीपुत्र की भांति सुन्दर भाषण दे सकते थे। भारतवर्ष के सभी देशों के जल-स्थलों के सभी दुर्गों के यातायात का पथ वे जानते थे। मानो शरीरधारी धनुर्वेद हों इस प्रकार समस्त प्रस्त्रों के संचालन में वे दक्ष थे। उन्होंने स्नान कर प्रायश्चित और कौतुक मंगल किया। शुक्ल पक्ष में जिस प्रकार नक्षत्र कम दिखलाई पड़ते हैं इसी प्रकार उन्होंने बहुत कम मणिमय अलङ्कारों को धारण किया। इन्द्र-धनुष सहित मेघ की भांति गम्भीय, सेनापति
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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