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________________ [119 तीन प्रकार के चिह्नों (बात, कफ, पित्त) से जैसे प्राण नष्ट होते हैं उसी प्रकार कलिंग देश के राजाओं को राजचिह्नों से हीन कर, दर्भ के विस्तार में रहे हों इस प्रकार विदर्भ-देश के राजाओं को निःसत्त्व कर, वस्त्र-व्यवसायी जिस प्रकार स्वदेश का त्याग करता है उसी प्रकार महाराष्ट्र के राजाओं द्वारा उनके देश का त्याग करवाकर, तीर से जैसे अश्वों को अंकित किया जाता है उसी प्रकार अपने तीर से कंकण देश के राजानों को अङ्कित कर, तपस्वियों की तरह लाट देश के राजामों के ललाट पर अञ्जलि रखवाकर, वृहद् कच्छपों की तरह कच्छ देश के समस्त राजानों को संकुचित कर और क्रूर सोरठ देश के राजाओं को अपने देश की तरह वश में करते हुए वे पश्चिम समुद्र तट पर पा उपस्थित हुए। (श्लोक १०९-११४) वहाँ छावनी डालकर प्रभास तीर्थ के अधिष्ठायक देवों को हृदय में धारण किया एव अष्टम तप कर पौषधशाला में जाकर पौषधव्रत ग्रहण कर लिया। अष्टम तप के पश्चात् सूर्य की तरह वृहद् रथ में बैठकर चक्री उस रथ को नाभि पर्यन्त समुद्र के मध्य में ले गए। फिर प्रत्यंचा तानकर प्रयाण के लिए कल्याणकारीजयवादित्रों के शब्दों की तरह टंकार ध्वनि की और प्रभास तीर्थ के देवता के निवास स्थान की ओर सन्देशवाही दूत की तरह स्वनामाङ्कित तीर निक्षेप किया। पक्षी जिस प्रकार अश्वत्थ वृक्ष पर गिरता है उसी प्रकार वह तीर बारह योजन दूर अवस्थित प्रभास देव की सभा में जाकर गिरा। बुद्धिमानों में श्रेष्ठ प्रभास देव ने उस तीर को देखा और उस पर खुदे चक्रवर्ती के नाम को पढ़ा। तत्क्षण प्रभासपति चक्री सगर के तीर के साथ अनेक प्रकार के उपहारों को लेकर इस प्रकार चक्रवर्ती के निकट पाए जिस प्रकार गहागत गुरु या अतिथि के पास गृहस्थ जाता है । उन्होंने आकाश में स्थित रहकर मुकुटमणि, कड़े, कटिसूत्र, बाजूबन्द और तीर चक्रवर्ती को उपहार में दिए और नम्रतापूर्वक अयोध्यापति को बोले- हे चक्रवर्ती, मैं अपने स्थान पर आपका आज्ञाकारी बना हुमा रहूँगा। (श्लोक ११५-१२३) तब चक्रवर्ती ने उपहार ग्रहण कर उससे वार्तालाप किया और सेवक की तरह उन्हें विदा कर छावनी में लौट आए। फिर स्नान कर जिन-पूजा एवं परिवार सहित अष्टम तप का पारणा
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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