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________________ कारण, जो चतुर होते हैं वे स्वदेह उत्पन्न फोड़े का भी इलाज करवाते हैं। बड़े पराक्रमी थे वे राजा। वायु जिस प्रकार वृक्ष शाखाओं को झुका देती है उसी प्रकार उन्होंने लीलामात्र में ही अपने चारों ओर स्थित राजाओं के मस्तक झुका दिए थे। तपोधन महात्मा जिस प्रकार अनेक भाँति प्राणियों की रक्षा करते हैं उसी प्रकार वे निरन्तर त्रिवर्ग (अर्थ, धर्म और काम) का पालन करते । वृक्ष जिस प्रकार उद्यान को सुशोभित करते हैं उसी प्रकार उदारता, धैर्य, गम्भीरता, क्षमा आदि गुण उन्हें सुशोभित करते । सौभाग्य और उनकी विस्तृत गुणराजि बहुत दिनों पश्चात् प्राए मित्र की भाँति मिली थी। पवन-गति की तरह पराक्रमी उन राजा का शासन पर्वत, अरण्य एवं दुर्ग आदि प्रदेशों में भी अव्याहत था। समस्त दिशाओं को प्राक्रान्त कर जिसका तेज प्रसारित है ऐसे उन राजा के चरण समस्त राजाओं के मस्तक को स्पर्श करते । जिस प्रकार सर्वज्ञ भगवान् उनके एक मात्र स्वामी थे वे भी उसी प्रकार समस्त राजाओं के एकमात्र स्वामी थे। इन्द्र की भाँति शत्र शक्तियों को नाशकारी वे राजा स्वमस्तक मात्र साधु पुरुषों के सम्मुख ही झकाते थे। उन विवेकी राजा की शक्ति वाह्य शत्रुओं को जय करने में जिस भांति अतुल थी उसी प्रकार काम क्रोधादि अन्तरंग शत्रनों को जय करने में भी अपरिमेय थी। स्व-बल से उन्मार्गगामी और दुर्मद हस्ती अश्वादि को वे जिस प्रकार दमन करते थे उसी प्रकार उन्मार्गगामी स्वइन्द्रियों का भी दमन करते थे। सुपात्र में दिया हुप्रा दान सीप के मुख में पड़े मेघ जल की भांति फलदायी होता है यह विवेचना कर वे दानशील राजा यथाविधि सुपात्र को दान देता। दूसरों के प्रावास में जिस प्रकार सावधानी पूर्वक प्रवेश कराया जाता है उसी सावधानी से वे राजा समस्त स्थानों में अपनी प्रजा को धर्म पथ पर चलाते । चन्दन वृक्ष जिस प्रकार मलयाचल की मिट्टी को सुगन्धमय करता है उसी प्रकार वे स्व पवित्र चरित्र से समस्त जग को सुवासित करते । शत्रयों को जय करने में, पीडितों की रक्षा करने में एवं याचकों को प्रसन्न करने में वे राजा युद्धवीर, दयावीर और दानवीर कहक र अभिहित होते थे। इस प्रकार वे राजधर्म में स्थित होने पर भी बुद्धि को स्थिर कर प्रमाद परित्याग कर, सर्पराज जैसे अमृत की रक्षा करते हैं उसी प्रकार पृथ्वी की रक्षा करते थे। (श्लोक २५-४२)
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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