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________________ [99 वेदिका और उद्यान से सुशोभित दधिमुख पर्वत हैं। वे प्रत्येक पर्वत चौसठ हजार योजन ऊँचे, एक हजार योजन गहरे और दस हजार योजन ऊपर और दस हजार योजन नीचे विस्तार वाला है। वापिका के मध्यवर्ती स्थान में दो-दो रतिकर पर्वत हैं। इस प्रकार सब मिलाकर बत्तीस रतिकर पर्वत हैं। दधिमुख पर्वत और रतिकर पर्वत पर अंजनगिरि की तरह शाश्वत अर्हतों के चैत्य हैं। उन द्वीपों की विदिशाओं में अन्य चार रतिकर पर्वत हैं। वे प्रत्येक दस हजार योजन लम्बे और चौड़े, एक हजार योजन ऊँचे सुशोभित सर्वरत्नमय दिव्य एवं झालर की आकार वाले (श्लोक ७०१-७३१) उनके दक्षिण में सौधर्मेन्द्र के दो रतिकर पर्वत हैं और उत्तर में ईशानेन्द्र के दो रतिकर पर्वत हैं। इन प्रत्येक की आठों दिशामों में और विदिशामों में प्रत्येक इन्द्र की पाठ-पाठ महादेवियों की आठ-पाठ राजधानियां हैं। इस प्रकार बत्तीस राजधानियाँ हैं । वे रतिकर से एक लाख योजन दूर, एक लाख योजन लम्बेचौड़े और जिनालयों से विभूषित हैं। उनके नाम सुजाता, सोमनसा, अचिमाली, प्रभाकरा, पद्मा, शिवा, शुची, व्यंजना, भूता, भूतवतंसिका, गोस्तूपा, सुदर्शना, अम्ला, अप्सरा, रोहिणी, नवमी, रत्ना, रत्नोचया, सर्वरत्ना, रत्नसंचया, वसु, वसुमित्रिका, वसुभागा, वसुन्धरा, नन्दोत्तरा, नन्दा, उत्तरकुरु, देवकुरु, कृष्णा, कृष्णराजी, रामा और रामरक्षिता हैं। पूर्व दिशा में भी क्रमानुसार यही नाम हैं। इस नन्दीश्वर द्वीप के जिन-चैत्यों में समस्त प्रकार के ऋद्धि सम्पन्न देवता परिवार सहित अर्हतों की कल्याणक तिथि के दिन अष्टाह्निका उत्सव करते है। (श्लोक ७३२-७३८) नन्दीवर द्वीप के चारों ओर नन्दीश्वर समुद्र है । फिर अरुण द्वीप और इसके चारों ओर अरुणोदधि समुद्र है। इससे आगे अरुणाभास द्वीप और अरुणाभास समुद्र है। फिर कुण्डल द्वीप एवं कुण्डलोदधि नामक समुद्र हैं। फिर रूचक नामक द्वीप और समुद्र है । इस प्रकार प्रशस्त नामक युक्त और पिछले से आगे वाला द्विगुण आकार विशिष्ट द्वीप और समुद्र अनुक्रम से वर्तमान है। सबसे बाद में स्वयंभूरमण नामक अन्तिम समुद्र है। (श्लोक ७३९-७४२)
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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