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________________ २७०] जैसे वृक्ष से फूल झड़ पड़ते हैं उसी प्रकार मुकुट के रत्नखण्ड जमीन पर झर पड़े। उस प्रहार से क्षणमात्र के लिए बाहुबली के चक्षु मुद्रित हो गए और उस भयंकर आवाज से लोक-समूह भी वैसे ही हो गया अर्थात् सभी के नेत्र बन्द हो गए। तब बाहुबली ने आँखें खोलकर संग्राम के हस्ती की तरह लोहे का उद्दण्ड दण्ड उत्तोलित किया। उस समय आकाश को यही आशंका हुई कि यह मुझे उत्क्षपित करेगा। पर्वत के अग्रभाग के विवर में स्थित सर्प की तरह बाहुबली की मुष्ठि में वह विशाल दण्ड शोभित होने लगा । दूर से बुलाने के लिए ध्वजा हो ऐसा वह लौह दण्ड बाहबली घुमाने लगे। धान्यबीज पर लाठी प्रहार की तरह वहलीपति ने उस दण्ड से चक्री की छाती पर निर्दयतापूर्वक प्रहार किया। चक्री का कवच खुब सख्त था फिर भी उस आघात से मिट्टी के घड़े को तरह वह चूरचूर हो गया, कवचहीन चक्री, मेघहीन सूर्य और धूमहीन अग्नि से लगने लगे। सप्तम मदावस्था प्राप्त हाथी की तरह राजा भरत क्षणमात्र के लिए घबरा गए। वे कुछ सोच ही नहीं पाए । फिर कुछ देर बाद प्रिय मित्र की तरह अपने बाहुबल की सहायता लिए पुनः दण्ड उत्तोलित कर बाहुबली की ओर दौड़े। दन्त द्वारा प्रोष्ठ मदित कर भृकुटि उत्तोलित कर भयंकर रूपधारी भरत ने बड़वानल के प्रावत की तरह दण्ड को खूब घुमाया और कल्पान्त काल में मेघ जैसे विद्युत् दण्ड से पर्वत पर प्रहार करता है उसी प्रकार बाहुबली के मस्तक पर प्रहार किया। लोहे के ऐरण पर वज्रमणि की तरह उस प्राघात से बाहुबली घुटने तक जमीन में फंस गए । मानो निज अपराध से भयभीत हो गया है इस प्रकार चक्री का दण्ड वज्रसार की तरह बाहुबली पर प्रहार कर टुकड़े-टुकड़े हो गया । घुटने तक धंसे हुए बाहुबली पर्वत पर स्थित पर्वत की तरह धरती से निकलने वाले शेषनाग की तरह शोभित होने लगे। मानो बड़े भाई के पराक्रम से चमत्कृत हो गए हैं इस प्रकार उस आघात की वेदना से वे सिर धुनने लगे एवं आत्माराम योगी की तरह क्षण मात्र के लिए कुछ सुन ही नहीं पाए। फिर नदी तट के सूखे कर्दम से जिस प्रकार हस्ती बाहर होता है उसी प्रकार बाहुबली धरती से बाहर निकले और लाक्षारस-सी दृष्टि से अपनी भुजाओं का तिरस्कार कर रहे हों इस भाँति क्रोधियों में अग्रणी अपने भुजदण्डों को देखने लगे। तदुपरान्त तक्षशिलापति बाहुबली तक्षक नाग की तरह दुष्प्रेक्ष्य दण्ड
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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