SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१८३ रहा है ऐसे समुद्र में चक्रवर्ती भरत ने रथ को नाभि पर्यन्त उतारा । एक हाथ धनुष के मध्य भाग में और दूसरा हाथ प्रत्यंचा पर रख उसको खींचा । धनुष का ग्राकार पंचमी के चांद का अनुकरणकारी बनाया एवं प्रत्यंचा को कुछ और खींचकर धनुष में टंकार दी । यह टकार धनुर्वेद की कार ध्वनि-सी लगी। उन्होने तूणीर से अपना नामांकित एक तीर निकाला जो कि पाताल से निर्गत सर्प-सा लगा । सिंह के कर्ण की तरह उन्होंने मुष्टि में शत्रु के लिए वज्रदण्ड रूप उस तीर को पकड़ा तथा उसका पिछला हिस्सा प्रत्यंचा पर चढ़ाया । कर्ण के स्वरालिंकार रूप मृणाल सदृश उस तीर को उन्होंने कानों तक खींचा। राजा के नखरत्न से प्रसारित किरणों में वह तीर अपने सहोदरों से घिरा हुआ हो ऐसा मालूम होता था । खिचे हुए धनुष के अन्तिम भाग में रहा वह चमकता तीर मृत्यु के खुले मुख में झिलमिलाती जिह्वा की लीला को धारण कर रहा था । उस धनुष के मण्डल में स्थित लोकपाल राजा भरत अपने मण्डल में अवस्थित सूर्य के समान भयंकर प्रतीत हो रहे थे । ( श्लोक ८९ - १०३ ) हो गया कि यह उस समय लवण समुद्र यह सोचकर क्षुब्ध राजा या तो मुझे स्थान भ्रष्ट करेगा या दण्ड देगा । भरत चक्रवर्ती ने तव बाहर, मध्य, आगे और अन्त में नागकुमार, असुरकुमार एवं सुवर्णकुमारादि देवताओं द्वारा रक्षित दूत की भांति प्रज्ञा पालनकारी और दण्ड की तरह भयंकर उस तीर को मगधतीर्थाधिपति पर निक्षेप किया । डैनों की फड़फड़ाहट की तरह शब्द से आकाश को जित कर वह तीर गरुड़ की भाँति खूब वेग से दौड़ा । राजा के धनुष से निक्षिप्त वह तीर इस प्रकार सुशोभित हुआ जैसे मेघ से उत्यन्न विद्य ुत, प्रकाश से गिरता तारा, अग्नि से उत्क्षिप्त स्फुलिंग, तापस से निकली तेजोलेश्या, सूर्यकान्त मरिण से वहिर्गत अग्नि, इन्द्र के हस्त से निक्षिप्त वज्र शोभित होता है । मुहूर्त्त मात्र में बारह योजन समुद्र को प्रतिक्रम कर वह तीर मगधपति की सभा में जाकर इस प्रकार गिरा जैसे वक्ष में प्राकर तीर पतित होता है । मगधपति असमय में सभा के मध्य तीर को ग्राकर गिरते देख इस प्रकार क्रुद्ध हुए जिस प्रकार लगुड़ प्रहार से घायल सर्प क्रुद्ध होता है । उनकी दोनों भृकुटि प्रत्यंचा खींचे धनुष की तरह भयंकर और गोलाकार हो गयीं । उनके नेत्र प्रदीप्त अग्नि की तरह लाल हो गए । नाक
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy