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________________ [१२५ पाकर उनके पिता के राज्य में जो अनुचित घटना घट रही थी उसे सुनाया। सुनकर तीन ज्ञान के धारक प्रभु ने जाति स्मरण ज्ञान से कहा-'संसार में जो मर्यादा का उल्लंघन करता है उन्हें दण्ड देने के राजा लिए होते हैं; किन्तु राजा को उच्चासन पर बैठाकर पहले उसका अभिषेक किया जाता है। उसके हाथ में प्रखण्ड अधिकार और चतुरंगिनी सेना रहती है ।' (श्लोक ८९३-८९८) यह सुनकर वे बोले-'हे स्वामी, पाप हमारे राजा बनिए। हमारी उपेक्षा आपके लिए उचित नहीं है। कारण, हमारे मध्य आप जैसा कोई नहीं है।' (श्लोक ८९९) ___ भगवान् बोले-'तुम लोग उत्तम कुलकर नाभि के पास जाकर प्रार्थना करो। वे तुम्हें राजा देंगे।' तब उन्होंने कुलकराग्रणी नाभि के पास जाकर निवेदन किया। नाभि ने कहा-'ऋषभ तुम्हारे राजा हों। (श्लोक ९००-९०१) युगलिकगण भगवान् के अभिषेक के लिए जल लेने गए। उसी समय स्वर्गाधिपति इन्द्र का सिंहासन कम्पित हुआ। उन्होंने अवधिज्ञान से प्रभु का राज्याभिषेक समय जानकर लोग जिस प्रकार एक घर से दूसरे घर में जाते हैं उसी प्रकार क्षणमात्र में अयोध्या पाकर उपस्थित हुए। (श्लोक ९०२-९०४) सौधर्म कल्प के उन इन्द्र ने स्वर्णवेदिका निर्मित कर अति पाण्डकवला शिला की भांति उस पर एक सिंहासन स्थापित किया। पूर्वदिक के अधिपतियों ने स्वस्तिवाचक की भांति देवताओं द्वारा लाए गए तीर्थजल से प्रभु का अभिषेक किया। इन्द्र ने प्रभु को दिव्य वस्त्र पहनाए। निर्मलता के कारण वे उस समय चन्द्र की भांति सुन्दर और तेजोमय लगने लगे। फिर इन्द्र ने उनके सर्वांग पर मुकुटादि अलङ्कार धारण करवाए। उसी समय युगलिक भी जल लेकर पा गए । भगवान् को दिव्य वस्त्र से भूषित देखकर वे सामने आकर इस प्रकार खड़े हो गए मानो उन्हें अर्घदान दे रहे हों। दिव्य वस्त्रालङ्कारों से विभूषित प्रभु के मस्तक पर जल डालना उचित नहीं समझकर उन्होंने कमल पत्र में लाया हुआ जल प्रभु के पैरों पर समर्पित कर दिया। इससे इन्द्र समझ गए कि वे अत्यन्त
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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