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________________ १००] और कोकनद जाति के कमल ले आए जिससे इन्द सहजतया समझ सकें कि वे क्षीर-समुद का जल ले पाए हैं। भारी जलाशय (कप, वापी और सरोवर) से जल भरने के समय जिस प्रकार कलश उठाया जाता है उसी प्रकार देवता कलश हाथ में उठाकर पुष्करवर समुद्र के तट पर आए और वहां से पुष्कर जाति के कमल लिए। फिर वे मगधादि तीर्थस्थल गए और वहां से जल और मिट्टी ली जैसे वे और अधिक कलशों का निर्माण करना चाहते हों । वस्तुक्रयकारी जिस प्रकार नमूना लेते हैं उसी प्रकार उन लोगों ने गङ्गा आदि महानदी का जल लिया। क्षुद्र हिमवन्त पर्वत से सिद्धार्थ के फल, श्रेष्ठ सुगन्ध की वस्तुएं और सब प्रकार की औषधियां लीं। उस पर्वत से उन्होंने पद्म नामक सरोवर से निर्मल सुगन्धित पवित्र जल और कमल लिए। एक ही कार्य के लिए प्रेरित होने के कारण उन्हों ने प्रतिस्पर्धी बन द्वितीय वर्षधर पर्वत स्थित सरोवर से पद्म अादि संग्रह किए । समस्त क्षेत्र से वैताढय पर्वत से और अन्य विजयों से अतृप्त देवताओं ने प्रभु के प्रसाद की तरह जल और कमल लिए। वक्षार नामक पर्वतों से उन्हों ने पवित्र और सुगन्धित वस्तुएं इस प्रकार ग्रहण की जैसे उनके लिए ही वे रक्षित थीं। आलस्यहीन उन देवताओं ने उत्तरकुरु और देवकुरु क्षेत्रों के तालाबों का जल कलशों में इस प्रकार भरा जैसे श्रेय द्वारा अपनी आत्मा को ही पूर्ण कर लिया हो। भद्रशाला नन्दन और पाण्डंक वन से उन्हों ने गोशीर्ष चन्दन आदि वस्तुएँ संगृहीत की। जिस प्रकार गन्धी समस्त सुगन्धित द्रव्य एकत्र करता है उसी प्रकार सुगन्धित जल और द्रव्य एकत्र कर वे उसी मुहूर्त में मेरुपर्वत पर पहुंचे। (श्लोक ४८१-४९३) तदुपरान्त दस हजार सामानिक देवता, चालीस हजार आत्म-रक्षक देवता, तैंतीस त्रायस्त्रिशक देवता, तीन सभा के समस्त देवता, चार लोकपाल, सात हत्ब सैन्यवाहिनी और सेनापति द्वारा परिवृत होकर पारण और अच्युत देवलोक के इन्द्र पवित्र होकर भगवान् को स्नान कराने के लिए प्रस्तुत हो गए। पहले अच्युतेन्द्र ने उत्तरासंग धारण कर निःसंग भक्ति से प्रस्फुटित पारिजात आदि पुष्पों को अञ्जलि में लेकर सुगन्धित धूप के धुएं से धूपित कर त्रिलोकनाथ के सम्मुख रखे । फिर देवताओं ने भगवान् के सान्निध्य के लिए प्रानन्द से जैसे हँस रहे हों ऐसे पुष्पमाल्य सुशोभित सुगन्धित जल के कलशे वहां लाकर रखे। उन जलपूर्ण कलशो पर
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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