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चौसठ हजार प्रात्म-रक्षक देव एवं अन्य उत्तम ऋद्धि सम्पन्न असुर कुमार देवताओं द्वारा परिवत होकर आभियोगिक देवताओं द्वारा तत्काल निर्मित पांच सौ योजन ऊँचे वृहत् ध्वजाओं से सुशोभित और पचास हजार योजन विस्तृत विमान में बैठकर भगवान् का जन्मोत्सव मनाने के लिए निकल पड़े। चमरेन्द भी शकेन्द की भांति अपने विमान को पथ में छोटा कर भगवान् के आगमन से पवित्र मेरुपर्वत पर पहुँचे ।
(श्लोक ४४३-४५१) वलिचंचा नामक नगर के इन्द बलि ने भी महौघस्वरा नामक वृहत् घण्टा बजवाया। उनके महाद्रुम नामक सेनापति के आमंत्रण पर आए हुए साठ हजार सामानिक देवता, उसके चार गुणा अर्थात् २४०००० अंगरक्षक देवता और अन्य त्रायत्रिशक इत्यादि देवताओ सहित वे भी चमरेन्द की भांति अमंद गति से आनन्द के मंदिर रूप मेरुपर्वत के शिखर पर पाए।
(श्लोक ४५२-४५४) नागकुमारों के धरण नामक इन्द ने मेघस्वरा नामक घण्टा बजवाया। उनके छह हजार पदातिक सेना के सेनापति भदसेन के कहने पर पाए हुए छह हजार सामानिक देवता और उनके चार गुणा अर्थात् २४००० आत्मरक्षक देवता अपनी छह पटरानियो और अन्य नागकुमार देवताओं सहित इन्दध्वज से सुशोभित पांच सौ हजार योजन विस्तृत और अढाई सौ योजन ऊँचे विमान में वैठकर भगवान् के दर्शनों के लिए उत्सुक होकर क्षणमात्र में ही मन्दराचल पर्वत के शिखर पर आए। (श्लोक ४५५-४५८)
भूतानन्द नामक नागेन्द ने मेघस्वरा नामक घण्टा बजवाया और दक्ष नामक सेनापति द्वारा सामानिक देव आदि को बुलवाया। फिर वे पाभियोगिक देवताओं द्वारा निर्मित विमान में सबके साथ वैठकर तीन लोक के नाथ से सनाथ बना है इस प्रकार के मेरुपर्वत पर पहुंचे।
(श्लोक ४५९-४६०) तदुपरान्त विद्युत्कुमारों के इन्द्र हरि और हरिसह, सुवर्णकुमारों के इन्द्र वेणुदेव और वेणुदारी, अग्निकुमार देवों के इन्द्र आग्निशिख और अग्निमानव, वायुकुमार देवों के इन्द्र वेलम्ब और प्रभंजन, स्वनितकुमारों के इन्द्र सुघोष और महाघोष, उदधिकुमार देवों के इन्द्र जलकान्त और जलप्रभ, द्वीपकुमार देवों के इन्द्र पूर्ण