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त्रिलोकसार
बेलुरियफला विमविसालसाहा दसप्पयारा ते । पल्लंकपाहिहेरग चउदिसमूलगय जिमपडिमा ॥१.१२॥ सालचयपीढग्यजुत्ता मणिसाइपचपुष्फफला । तच्चउवणमझगया चेदियरुक्खा सुसोहंति ॥१.११॥ चतुर्वनमशोकसप्तच्छदचम्पक चूतमत्र कल्पतरवः । कनकमयकुसुमशोभाः मरकतमर्यावविधपत्राठ्याः ॥१०११।। वैडूर्यफला विद्रमविशालशाखाः बशप्रकारास्ते । पल्यङ्कप्रातिहार्यगाः चतुर्दिशामुलगता विनप्रतिमाः ॥१०१२।। शालपपोत्रमयुक्ताः मणिशाखापत्रपुष्पफला।।
तम्चतुर्वनमध्यगता: चैत्यवृक्षाः सुशोभन्ते ।। १०१३॥ च। प्रशोकसतहदम्पकतमयानि प्रत्वारि वनानि सन्ति । अत्र पुनः कनकमयकुसुमशोभिता: मपविविश्पा पर मल ॥१॥
पेरिय । ते च पुन: बसूर्यफला विनुमविशालशासा: यशप्रकाराः स्युः । तत्रैव पर्ने पुना पल्यातिहाप्रयुक्तविरमगजिनप्रतिमाः ॥ १०१२ ॥
साल । शासत्रयपोठत्रययुक्ताः मणिमयशाarपत्रपुष्पफलाचतुर्वनमध्यातायचयपृक्षा: सुशोभन्ते ॥ १०१३॥
अब वितीय कोट और तृतीय ( माल ) फोट के अन्तराल का स्वरूप चीन पाथाओं द्वारा माहते हैं:
गापा:-द्वितीय और तृतीय कोट के अन्तराल में अशोक, सप्तच्छव, चम्पक और आम्र के पार वन है। उन वनों में भोजनाङ्गादि दश प्रकार के कल्पवृक्ष है, जो स्वर्णमय फूलों से सुशोभित, मरकत मणिमय नाना प्रकार के पत्रों से सहित, वैडूर्य रत्नमस फलों से युक्त और विद्र म म गामय ढालियों से संयुक्त हैं। उन चारों वनों के मध्य में तीन कोट और तीन पीठ से संयुक्त तथा मणिमय हामी, पत्र, पुष्म और फलों से युक्त चैत्यवृक्ष शोभायमान होते हैं। उन चैत्य वृक्षों के मूल की चारों दिशाओं में पल्यासन प्राय प्रातिहायों से युक्त विन विम्ब विराजमान हैं ॥ १.११-१०१३।।
वियोवार्य :-दूसरे और सोसरे कोट के अन्तराल में अशोक, सप्तच्छद, पम्पक और मात्र के चार वन हैं। उन वनों में स्वर्णमय फूलों से सुशोसिस, मरकत मरिणमय नाना प्रकार के पों से सहित वहयरत्नमय फलों से युक्त और विद्रम मूगामय हालियों से संयुक्त भोजनाङ्गादि दश प्रकार के कल्प वृक्ष हैं। उन चारों वनों के मध्य में तीन कोट एवं तीन पीठ से संयुक्त तथा मणिमय डाली, पत्र, पुष्प और फलों से युक्त पार चैत्यवृक्ष शोभायमान होते हैं । इन चैत्यवृक्षों के मूल की चारों दिशाओं में पत्यशासन एवं छत्र, पमरादिप्रासिंहागों से युक्त जिन बिम्ब विराजमान हैं।