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त्रिलोकसार
गाथा ।९७९-९८०-९८१
बरमध्यमावराणां दलकम भद्रशालनन्दन काः। मन्चीश्वरकविमानगजिनालया भवन्ति ज्येष्ठाः हि ||९७६ ॥ सोमनसरुचककुण्डलवक्षोरध्वाकारमानुषोत्तरगाः ।
. कुलगिरिगा अपि च मध्यमा जिनालया पाण्डुगा अवराः ॥९॥ वर। उस्कृष्टमध्यमजघन्यचंयालयानां न्यासादिकमर्षिकम जानीहि। भवशाल नवनभन्दोश्वरविमानगतजिनालया ज्येष्ठाः खलु भवन्ति ॥ ६ ॥
सोमण | Rौमनसरुवककुण्डलवक्षारेष्वाकारमानुषोत्तरगा: फुलगिरिगता प्रपि च जिनालया: मध्यमाः, पारडकवनगता जघन्याः ॥१८॥ । इस कहे हुए अर्थ का हो विशेष-दो गाथाओं द्वारा कहते हैं :
गाया:-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य जिनालयों का व्यासादिक कम से आधा आया है। भद्रशा बन, मन वन, नीश्वर डीपीस मानिक देवा के विमानों में जो जिनालय हैं, वे उत्कृष्ट व्यासादिक प्रमाण वाले हैं तथा सौमनस् वन, रुचकगिरि, कुण्डलगिरि, वक्षार, इष्वाकार, मानुषोलर पर्वत और कुलाचलों पर जो जिनालय हैं, उनका ध्यासादिक मध्यम और पाण्डक वन स्थित जो जिनालय हैं, उनका व्यासादिक जघन्य प्रमाण वाला है ।। १७९-८० ॥
विशेषार्थ :-उत्कृष्ट जिनालयों के व्यासादिक से मध्यम जिनालयों का व्यासादिक अधंभाग प्रमाण है और मध्यम से जघन्य जिनालयों का व्यासादिक अर्घभाग प्रमाण है। भद्रशाल वन, नन्दन वन, नन्दीश्वर द्वीप और देवों के विमानगत जो जिनालय हैं, वे उत्कृष्ट प्रमाण वाले हैं। सौमनस् वन, रुचक गिरि, कुम्हलगिरि, वक्षार, इप्वाकार, मानुषोत्तर पर्वत और कुलाचलों पर जो जिनालय हैं, वे मध्यम तथा पाण्डक वनस्थ जिनालय जघन्य प्रमाण वामे हैं। __ तदनन्तरं ज्येष्ठजिनालयानामायामागाद्वारोसेघानाह:--
जोयणसय मायाम दलगाई सोलसं तु दारुदयं । जेट्ठाण गिडपासे आणिदाराणि दो दो दु ।। ९८१ ।। योजनशतमायामः दलावगाहः पोडश तु द्वारोदयः।
ज्येष्ठानां गृहपार्वे प्रणुद्वारे तु हूँ तु || ६८१ ।। जोयण । ज्येजिनालयानामायामो योजनशतं मधयोजनावगाढः षोडशयोजनानि तछारोदयः सजिनगृहपावर्षे लल्लकद्वारे भवतः ।। ६१ ||
इसके बाद उत्कृष्ट जिनालयों का आमाम, गाध (नींव ) और द्वाशों की ऊंचाई कहते हैं :गाथार्थ 1- उत्कृष्ट जिनालयों का आयाम सौ योजन प्रमाण और गाघ अध योजन प्रमाण है।