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________________ ७२६ त्रिलोकसार पाषा : ९३२-१३५ देवारण्य का ध्यास ५८४४ योजन है। "विष्कम्भवम्मदहगुण" गाथा ६६ से इसकी करणि रूप परिधि ३४१५२३३६० योजन होती है। इसका वर्गमूल ग्रहण करने पर देवारण्य की परिषि का प्रमाण १८४८० योजन होता है। जबकि एक भाग का परिधि क्षेत्र १८४८० योजन है तब दो भागों का कितना होगा? इस प्रकार राशिक करने पर १८४८०४२ योजन होत्र प्राप्त हुआ। यदि २१२ शलाकाओं का १८४०x२ योजन क्षेत्र है, तब विदेह की ६४ शलाकाओं का कितना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार राशिक करने पर १८४८०४२x६४ योजन विदहगत देवारण्य की वृद्धिक्षेत्र का प्रमाण प्राप्त होता है। जबकि २१२ २प्रान्तों का १८४८०x२x६४ याजन क्षोत्र है, तब एक प्रान्त का कितना धोत्र होगा ? इस प्रकार २१२ राशिक करने पर-१८४८०४२ ४६४ योजन हुए। इन्हें “मुख भूमिसमासामिति" इस युक्ति से २१२४२ भाषा करने पर १८४८.४२४६४ योजन हुष । इसे यथायोग्य अपवतंन करने पर गायोक्त देवारण्य १६x२x२ सम्बन्धी वृद्धिोत्र का प्रमाण १८४८०४३२ योजन प्राप्त होता है। इसे ३२ गुणकार से गुणित करने पर ५११३० योजन हुए और अपने भागहार में भाजित करने पर देवारण्य सम्बन्धी मध्य धोत्रवृद्धि का प्रमाण २७८०१३ योजन हमा। पुष्कलावती का बाहय आयाम ५८७४४०३१३ योजन है और यही देवारभ्य का प्राधायाम है । अर्थात पुष्कलावती का बाहर आयाम ही देवारण्य का आद्यायाम है। इसी प्रमाण को प्राप्त करने का विधान कहते हैं : नधी के एक तट पर आठ देश, चार वक्षार और तीन विभंगा नदिया है तथा मादि आयाम से मध्य में और मध्य सायाम से अन्त में, इस प्रकार प्रत्येक में दो दो बार स्व वृद्धि का प्रमाण बढ़ता है। यथा-देश वृद्धि का प्रमाण ४५८३३५ योजन है। इसे १६ ( देशों ) से गुणा करने पर ७३३२८२ योजन हुए । वक्षार पर्वत की वृद्धि का प्रमाण ४७७६ योजन है। इसको ८ ( वक्षार पर्वतों) से गुणित करने पर ३८१६३१ योजन हुए। विभंगा नदी की वृद्धि का प्रमाण ११९३५३ योजन है, इस प्रमाण को ६ (विभागा नदियों ) से गुणित करने पर १४३१३ योजन हए । यहाँ उपयुक्त तीनों प्रमाणों में जो अंश है, उन्हें जोड़कर उनमें कच्छदेश के आयायाम के ३० अंश भी जोड़ देने पर( + + ३१३+३१३-१५२ प्राप्त हुए । इन्हें अपने भागहार ( २१२ ) मे भारित करने पर १६ योजन प्राप्त हुए और १३ मंश अवशेष रहे, ये देवारण्य के आद्यायाम के अंश हैं। यहाँ १९ मोजम तो ये प्राप्त हुए तथा १६ देश, ८ वक्षार एवं ६ विभंगा की वृद्धि का प्रमाण-(७३३२८+ ३८१६+१४)= ७८५८ योजन और कच्छ देश के प्राद्यायाम के अंशि का प्रमाण २०६५७० योजन का योगफल ( ५०९५७+७७८+१९)-५८७४४७ योजन हमा, यही देवारण्य का आद्यायाम है। अर्थात् कच्छदेश के बाधायाम का प्रमाण ५.५५७ ३११ योजन, १६ देशों का वृद्धि प्रमाण
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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