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________________ ४२४ त्रिलोकसार पाषा : ३२-९३३ अब पुनः इस कच्छदेश के वृद्धि प्रमाण ६०५३७ x 4 के बत्तीस की भागहार दो से अपवर्तन करने पर १२x२ १६ गुणकार रहा । अर्थात ६०७३७४१६ हुआ, इसमें गुणकार का गुणा करने पर ५५५र योजन २१२ हुए। इन्हें अपने भागहार से भाजित करने पर कच्छ देश सम्बन्धी मध्यायाम क्षेत्र ४५०३:१६ योजन प्रमाण प्राप्त होता है । इमको भद्रशाल के अन्न आयाम सदृश जो कच्छ देश का अम्यन्तर आयाम ५०९५७०३६३ योजन है, उसमें जोर देने ये ( ५०.५७०२६३ + ४५८३३१)-५१४१५४३१५ योजन प्रमाण मध्यायाम होता है और इस मध्यायाम में पुन: पूर्वोक्त वृद्धि क्षेत्र जोड़ देने पर । ५१४१५४१ + ४५८३३१५ )-५१८७३८११ईयोजन कच्छ देश के अन्त में मायाम का प्रमाण प्राप्त हुमा। वनार पर्वत का व्यास १००० योजन प्रमाण है। "विष्कम्भवम्गदहगुण' गाथा ९६ से १००० की करणि रूप परिधि १०००००.० योजन हुई, इसका वर्गमूल ग्रहण करने पर ३१६२ योजन हुए, यही ३१६१ योजन प्रमाण वक्षार व्यास को परिधि का प्रमाण है । जबकि १ भाग का ३१६२ योजन क्षेत्र है, तब दोनों भागों का कितना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार राशिक करने पर ३१६२४२ योजन हए । पश्चात् जबकि २१२ शलाकामों का ३१६२ ४ २ योजन वृद्धि क्षेत्र है तब विदेह की ६४ शलाकाओं का किसना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर विदेह में प्राप्त परिधि का वृद्धि क्षेत्र ३१६२x२x६४ योजन प्रमाण हुआ। ( यदि नदी के दो तट रूप ) दो प्रान्तों के क्षेत्र में परिधि का वृद्धिगत क्षेत्र ३१६२ x २४६४ योजन है, तो एक प्रान्त में कितना होगा ? इस प्रकार राशिक करने २१२ पर ३११२x२x६४ योजन हुआ। यही वक्षार के अन्त में परिधि के वद्धि का प्रमाण है। २१२४२ "मुखभूमि समासाचं मध्यफलं" इस ग्याप से इसका आधा करने पर ३१६२४२४६४ योजन १२x२x२ हुए । इन्हें यथायोग्य अपवर्तित करने पर "बत्तीसगुणा तहि बड्डो" गाथा १३२ में कहा हा ३१६२ x ३२ अर्थात् वक्षार की परिषि ( ३१६२ यो०) को ३२ से गुणित कर २१२ का भाग देने पर १२ परिधि में शेषद्धि का प्रमाण प्राप्त होता है, इस कथन को सिद्धि हुई । यहाँ गुणकार ३२ से गुणित करने पर 20 योजन हुए, इन्हें अपने ही भागहार ( २१२ ) से भाजित करने पर ४७७१३ पोजन वक्षार के अभ्यन्तर आयाम से मध्यायाम की वृद्धि का प्रमाण हुआ। पूर्वोक्त कच्छदेश का बाहायाम २१८७३८१ योजन ही वक्षार का अभ्यन्तर मायाम है, अत: इसमें पूर्व में निकाला हुआ यक्षार में क्षेत्र वृद्धि के प्रमाण ४७७१ योगनों को जोड़ देने पर बझार के मध्य में आयाम का
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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