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________________ पाया। नरतिबंग्लोकाधिकार इदानी घातकीबण्डस्य विदेहस्यकच्छादीनामायाम पायावयेनाह गिरि जुद दु महसालं मझिमसाइम्हि घणरिणे धई। पुव्ववरमेरुबाहिर मभंतरमहसालमैतस्स ।। ९३. ।। गिरियुत विभद्रशाल मध्यमसूची धनणे सूची। पूर्वापर मेहबाह्याभ्यस्त रभद्रशालान्तस्य || १३०॥ गिरि। घातकोखण्डस्थपूर्वापरमवरयोरधि गृहोस्वा एकमन्दरल्यास कृपया १४०० तत्र तयोर्बाह्य भद्रशालापव्यासं २१५७५८ मेलपित्वा २२५१५८ वं मध्यमसच्या ६००००० भने कृते ११२५१५८ पूर्वापरमेढे ह्यभाशालयोर्वाह्यसूचिर्भवति । सासूच्या दल. पुनरस्मिन् २२५१५८ ऋणे छते योरभ्यन्सरसूषि: स्यात् ६५४८४२ तवभ्यन्तरभासालसूचोव्यासं ६७४८४२ विकम्मवग्गेत्यादिना कररिण करवा ४५५४११७२४६६४० प्रस्य मूले गृहोते २१३४०३७ सासूचीपरिषि। स्यात् । बस्मिन् पर्वताबाडक्षेत्र १७८८४२ प्रपोते गिरि हि.परिषिः स्यात् १९५५१६५ ॥६३०॥ ___अब धातकी खण्ड के विदेह क्षेत्र में स्थित कच्छादि देशों का बायाम ( लम्बाई ) हो पाषाओं वाचा कहते हैं : गाया :--मेरु पर्वत का व्यास और दोनों बाल भदशालयनों के दुगुने व्यास को पातकी खण्ड के मध्यम सूची व्यास में जोड देने पर पूर्व पश्चिम मेस पर्वतों के दो भदशाल बनों का ( कालोदा की मोर ) बाह्य सूची व्यास का प्रमाण प्राप्त होता है और उसी मध्यम सूची ध्यास में से मेह का व्यास और भद्रशाल बतों का दुगुना ध्यास घटा देने पर दोनों मशाल धनों का ( लवण समुद्र को ओर ) अभ्यन्तर सूची व्यास का प्रमाण प्राप्त होता है | ॥ विशेषाप:- घातको वश सम्बन्धी विवहस्थ कम्बादि देशों की दक्षिणोत्तर लम्बाई परिधि में है, इसलिए वहाँ को परिधि कहते हैं : धातकी खण्ड के पूर्व पश्चिम मेरु पर्वतों का अचं अभ्यास ग्रहण करने पर एक मेरु का व्यास ६४.० योजन हमा। इसमें दो मेरु सम्बन्धी कालोदक को ओर के दोनों बाहरभद्रशाल वनों का ध्यास २१५७५६ योजन जोड़ देने पर { २१५७५८+४..- २२५१५८ योजन हुआ, इसे मध्यम सूचीभ्यास ७.०२० योजनों में जोड़ देने पर ( २.....+२२११५८ )=११२४१५८ योजन पूर्व पश्चिम मेरु पर्वतों के बाह्य भद्रशाल वमों का ( कालोदक समुद्र की ओर ) बाह्य सूची मास प्राप्त होता है. सथा उसी मध्य सूची व्यास १ लास योजनों में से उन्हीं दोनों मेरु पर्वतों का अर्ष अर्थ ध्यास ओर अभ्यन्ता भद्रग्राउ धनों का २१५५८ योजन मिलाकर प्राप्त हुए (२१५७५+९४०० )=२१४१५८ योजनो को घटा देने पर ( १0000०-२२५१५८ )=६४४८४१ योजन दोनों अम्यन्तर पदशाल बों का
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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