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________________ गापा : ३-८०३ निरलिमंग्लोकाधिकार दी थी। (११) चन्द्राम कुलकर ने सन्तानोत्पनि के बाद बहुत काल तक जीवित रहने से जो भय उत्पन्न हुआ था, उसका निवारण किया था। (१२ ) मरुदेव ने नदी आदि को पार करने के लिए नाव एवं पुल कादि बनाने की तथा पर्वतादि पर चढ़ने के लिए सीढ़ी आदि की शिक्षा दी थी। (१३) प्रसेनजित् ने जरायु पटल के छेदने का उपाय निर्दिष्ट किया था। (१४ ) अन्तिम कुलकर नाभिराय ने नाभिनाल छेदने का उपाय बताया था, तथा इंद्रधनुष के देखने और बिजली आदि चमकने से उत्पन्न हुए भय का निवारण किया था । फलाकृति में कोन फल औषधि रूप हैं और कौन भोजन योग्य हैं, यह भी सिक्षाया था। यहां से ही कर्मभूमि की रचना प्रारम्भ हुई थी। पुरगामवणादी लोहियसत्थं च लोयवहारो। धम्मा वि दयाभूलो विमिम्मियो मादिषम्हेण 11८.२|| पुरग्रामपट्टनादिः लौकिकशास्त्रं च लोकव्यवहारः। धर्मोऽपि दयामूलः विनिर्मित: आदिग्रह्मणा ।। ८०२॥ पुर। पुरप्रामपत्तनाविलौकिकशास्त्र व लोकव्यवहारो क्यामूलो षोऽपि माविब्रह्मणा विनिर्मितः ॥८०२॥ गापा:-नगर, ग्राम, पत्तन आदि की रचना; लौकिक शास्त्र, मसि मसि कृषि आदि लोकव्यवहार; बोर व्याप्रधान धर्म का स्थापन आदिब्रह्मा श्री ऋषभनाथ तीर्थंकर ने . किया। ८०२॥ अथ चतुर्थकालसमुत्पन्न शलाकापुरुषानिरूपयनि चवीसगारतिषणं तित्थयरा अधिखंड मरहबई। तुरिए काले होति हु तेवद्विसलामपुरिसा ते ॥ ८.३ ॥ चतुर्वितिः द्वादश त्रिधनः तीर्थकराः पत्रिखण्डभरतप्रतयः । तुर्ये काले भवन्ति हि त्रिषष्टिशलाकापुरुषास्ते ॥ ८०३ ॥ चवीस । शितितो करा: श षट्खण्डभरतपतयः सप्तविंशतिस्त्रिखण्डभरसपतयः इत्येते त्रिषष्टि ६३ शालाकापुरवाश्चतुकाले भवन्ति ॥ ३ ॥ चतुर्थ काल में उत्पन्न हुए शलाका पुरुषों का निरूपण करते हैं : गाथा:-चतुर्थ काल में चौबीस तीर्थङ्कर, बारह षट्खण्ड भरतक्षेत्र के अधिपति ( चक्रवर्ती ) और तीन का धन अर्थात् सत्ताईस विखण्ड भरत के अधिपति ये वेशठ शलाका पुरुष होते हैं ।। ८०३ ॥ विशेषा : -२४ तीर्थकर, १२ षट्खण्ड भरतपति अर्थात् चक्रवर्ती और (३४३ x ३ =
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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