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पाया : ६.९-१० नरतियंग्लोकाधिकार
३ उन वनों में स्थित वृक्षों को कहते हैं :
गापाय:-- कल्पवृक्षों को शोभा प्राप्त करने वाले उन चारों वनों में मन्दार, आम्र, पम्पक, चन्दन, घनसार, केला, श्रीफल, ताम्बूली, सुपारी और जायपत्री आदि के अनेक वृक्ष है ।। ६० ।। साम्प्रतमितरमन्दराणां व्यवधाननिरूपणब्याजेनोसेघ कश्यति
रासय पणापमदिरा पाणवण्णसहस्सयं सहस्साणं । अट्ठावीसिदराणं सहस्सगाई तु मेरुणं ।। ६.९ ।। पश्वशतं पश्चातसहितं पश्चपञ्चाशवसहनक सहस्त्राणां ।
अष्टावितरितरेषां सहनगावस्तु मेरूणाम् ॥ ६०६ ॥ पणसय । पञ्चशतयोबनानि ५०. पञ्चशतसहितं पश्चपाशसहसयोजनानि ५५५०. महाविंशतिसहस्रयोजनानि २५००० इतरेषा मेरुणा बनानान्तराशि पञ्चाना मेकपा सहस्रपोजनाबगायो १००० नातायः ॥६०९॥
अब अन्य मैक पर्वतों पर स्थित बनों के अन्तराल निरूपण के बहाने से उन मन्दर मेरुओं की ऊंचाई का प्रमाण कहते हैं :
पापाषं :-अन्य चार मेरु पर्वतों पर भी मेर के मूल अर्थात पृथ्वी पर भद्रशाल वन है, इसके ऊपर क्रम से पांच सौ योजन, पचपन हजार पाँच सौ और पट्ठाईस हजार योजन जा जाकर अन्य वनों की अवसिथति है। इन्हीं अन्तरालों के योग का प्रमाण मेरु पर्वतों की ऊंचाई का प्रमाण है । पाँचों मेरू पर्वतों का गाय-नीव का प्रमाण एक हजार योजन है ॥ ६ ॥
विशेषार्थ:--अम्बूद्वीप सम्बन्धी विदेह स्थित मेल के अतिरिक्त दो मेरु घातको खण्ड में और दो मेरु अधंपुष्कर द्वीप में स्थित हैं। चारों मेरु पर्वतों के मूल में भद्रपाल वन है; इस वन से ५०० योजन ऊपर नन्दनवन, ५५४.० योजन ऊपर पाकर सौमनसवन और २८००० योजन ऊपर जाकर पापक वन की अवस्थिति है। इन चारों वनों के अन्तराल का योग ( ५००+५५५०+२८...=) ४... योजन है। यही २४.०० योजन प्रस्येक मेरु पर्वत की ऊंचाई का प्रमाण है। पांचों मे पर्वतों का गाव अर्थात् नींव १००० योजन ही है। अथ तेषां वनानां विस्तार निरूपयति
वावीसं च सहस्सा पणपणकोणपणसयं वासं । पढमवणं वज्जित्ता सव्वणमाणं पणाणि सरिसाणि ॥६१०॥ द्वाविंशतिः च सहस्र पश्वरचषटकोनपञ्चशतं व्यासं । प्रथमवनं वजंयित्वा सर्वनगानां वनानि सदृशानि ॥ ६१ ।।
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