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________________ 3 fret ग्लोकाधिकार मेरू । विवेहस्य मध्यप्रदेशे मेरुरस्ति, तस्योदय भूमुलण्यासा ययासंख्यं नवमवतिलहन EE००० बासल १०००० एकसहस्र १००० योजनानि स्युः । स च पुनरापर्युपरि कस्णयगत मनंचतुष्कतः ॥ ६०६ ॥ अब विदेह क्षेत्र के मध्य में स्थित मन्दर मेरु का स्वरूप कहते हैं : गायार्य :- विदेह क्षेत्र के मध्यप्रदेश में सुदर्शन मेरु स्थित है, जिसका उदय, भू व्यास और मुखव्यास क्रमशः ९९०००, १०००० और १००० योजन है । यह मन्दर मे ऊपर ऊपर चार वनों से संयुक्त है ।। ६०६ ।। गाथा : ६०७ विशेषार्थ :- विदेह क्षेत्र के मध्यस्थित सुदर्शन मेरु ९९००० योजन ऊँना है; मूल में उसकी चोदाई दस हजार योजन और ऊपर एक हजार योजन है तथा वह ऊपर ऊपर कटनी में चार वनों से संयुक्त है। इदानीं वनचतुष्कस्य संज्ञाः तदन्तरालं च प्रतिपादयति J सोमणच दणं । पिणघणबाब चरिहृद पंचस्याणि गंतूणं ।। ६०७ ।। ५११ मुवि भद्रशालं सानुगं नन्दनसौमनसपापकं च वनम् । एक पचधनद्वासप्ततितपश्चशतानि गत्वा ।। ६०७ ॥ भद्द | सुगतं वनं भवद्यालायं सानुत्रयगतानि यथासंख्यं मन्दनसीमन पाण्डुकारुवनानि तानि एक १ पचधन १२५ द्वासति ७२ हत पञ्चशतयोजनानि ५०० ६२५०० | ३६००० गत्वा गत्वा हिन्ति ॥ ६०७ ॥ चारों वनों के नाम और उनके अन्तराल का प्रतिपादन करते हैं :-- गाथार्थ :- मेरा की मूल पृथ्वी पर भद्रशाल वन है, तथा इसके सानु प्रदेश अर्थात् कटनी पर नन्दनवन, सौमनस वन और पाण्डुक वन हैं । इनकी अवस्थिति एक से गुणित पाँच सौ, पांच के घन ( १२५ ) से गुणित पाँच सौ और बहत्तर से गुणित पाँच सौ योजन प्रमाण आगे जाकर है || ६०७ ॥ विशेषार्थ :- सुमेरु पर्वत के मूल में ( भूमि गल ) भद्रशाल नाम का वन है । यह वन मन्दर महाचलेन्द्र के चारों ओर है । इस वन से ५००×१ प्रर्थात् ५०० योजन आगे जाकर कटती पर दूसरा नन्दन नाम का वन है। इससे ५०० (५×५x५ - १२५ ) अर्थात् ६२५०० योजन ऊपर नाकर सौमनस नाम का वन है । इस वन से ५०० x ७२ अर्थात् ३६००० योजन ऊपर जाकर सुमेरु के शीर्ष पर चौथा पाण्डुक नामक वन है। ये तीनों वन भी मन्दर गिरीन्द्र के चारों ओर हैं। मन्दर मेरु की कुल
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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