SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादन सामग्री त्रिलोकसाथ के प्रस्तुत संस्करण का सम्पादन विशेष अनुसन्धानपूर्वक निम्नलिखित ५ प्रतियों के आधार पर किया गया है । 'प' प्रति का परिचय ८ यह प्रति भाषहारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट पूना से प्राप्त हुई है। इसमें x ४ इंच विस्तारवाले ४२९ पत्र है। प्रतिपत्र में पक्तियाँ और प्रति पंक्ति में ३० से ३५ अक्षर है। लिपि सुवाच्य है । अन्त के दो पो हो कि २६-७-१३२६ ई को लगाए गए हैं। शेष पत्र प्राचीन है। अन्तिम पत्र के जी होकर नष्ट हो जाने से प्रति के लेखनकाल का ज्ञान नहीं हो सका है। बोच बोच में लाल स्याही मे संदृष्टियों के अंक भी दिए गए हैं। इस प्रति में १६५ से १५० तक के पत्र नहीं है। पूना से प्राप्त होने के कारण इसका सांकेतिक नाम 'प' है । 'ब' प्रति का परिचय यह प्रति ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन व्यावच को है । श्रीमान् पं० हीरालालजी शास्त्री के सौजन्य से प्राप्त हुई है। इसमें २१९ पत्र है। प्रत्येक पत्र में १० पंक्तियाँ हैं किन्तु प्रारम्भिक पृष्ठ में ११ पंक्तियाँ हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४०-४५ तक अक्षय हैं। हिने में चमकदार काली और लाल स्थाही का उपयोग किया गया है। लिपि सुवाच्य है। लिखित पत्र के चारों ओर के चिक्त स्थान में सघन टिप्पण दिए गए हैं। बीच बीच में ब संदृष्टियाँ लाल स्याही से दीगई है। प्रति शुद्ध है। लिपिकाल प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया बृहस्पतिवाद विक्रम संवत् १७८८ है । प्रति की दशा अच्छी है फिर भी जो होने के सम्मुख है। भरत में प्रशस्ति इसप्रकार दी है "ति । श्रोमच्छ्रीम कंस मयात् वसुदिग्गज शैलशा संमिते हायने प्रवरे श्रीमच्छालिवाहन भूपाल प्रवर्तावित शाके वृहद्भानुभूत भूपालप्रमिते मासोत्तम श्री ज्येष्ठवरिष्ठमासि सितेतरपक्षे द्वितीया कर्मवादयां ( तियों) पुरन्दरपुरोहितवारे लिखितोऽयं ग्रश्थः । श्रीमदंचल गच्छाषिदराज पूष्यभट्टारकपुरन्दर भट्टारक श्री विद्यासागर सूरीश्वराणामुपदेशतः श्री श्रीमालीज्ञातीय साह श्रष्ठालचन्द्र सुस साह श्री कस्तुरन्द्र साहाय्येन षी बुरहानपुरे लेखक हेमकुशलेन लिखितः । अग्रवालज्ञातीय साह श्री श्यामदासेन लिखापितोऽयं ग्रन्थः ज्ञानवृद्ध आत्मश्रं यसे च श्रीमदुषजनेः पठ्यमानो वाच्यमानः भूयमानाचन्द्रा के तिष्ठत्रय ग्रन्थः । श्रीः श्रीः श्रीः श्रीरस्तु । करकृतमपराधं सन्तुमर्हन्ति सन्तः ।" व्यावर से प्राप्त होने के कारण इसका सांकेतिक नाम 'क' है।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy