SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिलोकसाब गापा : ३६१ प्राप्त होते हैं। इसीलिये ३ बार २४ २ को परस्पर गुणित करने से ७४७ प्राप्त होते हैं । इस प्रकार ऋण राशि का प्रमाण निम्न प्रकार है:-१ ला०४ १ ला.४७६८.०.४७६८०.०४ प्रतरांगुल x ६४ ४६४x७४७ प्राप्त होता है। गापा १११ के अनुसार ऋण अर्धच्छेदों से प्राप्त राशि भागाहार होती है, अतः दोनों प्राप्त राशियां इस प्रकार लिखी जा सकती हैं : जगत्प्रतर प्रतरांगुल x १ ला०४१ ला.४७६८००० ४७६८०.०x४७४६४४ ६४ गा० २३१ के अनुसार गच्छ प्रमाण गुणकार में से १ कम करना चाहिये । अर्थात् अगरप्रतर-१ प्रतरांगुल x १ लाoxरला.४७६८०.०४७६८०००४७७४६४४। पुनः इसको एक कम गुणकार अर्थात् (४-१-३) से भाग देकर आदि ( मुख) अर्थात् ६४४ ५७६ से गुणा करना चाहिये ( देखो गा०३६.) अता प्राप्त संख्या इस प्रकार होगी:१७६ ४ ६४ x जगत्त र .v३ हा प्रतरांगलx.ला.x१ला०४७६८०00xURREYXxx का न तथा ६४ व १७६ को १६ से अपवर्तन करने पर फल निम्न प्रकार प्रा होता है : ११४ जगत्प्रतर प्रतरागुल x १०००.०००१-४२५६ ४३४१००४२५६४३४१७.०४४xxx ३ ११xजगत्प्रतर -प्रतरांगुल x १००००..0000000000४ ६५५३६ ४ २७४४४२ ११x जगत्प्रतर प्रतरागुल x ६५५३६ x ५२९२XT............ यह गाथा ३६. में कथित धनराशि का संकलन है । गा• ३६० में कथित ऋणराशि का संकलन निम्न प्रकार है। मुख (आदि ) ६४ है। गुणकार २ है और गच्छ पूर्वोक्त जगच्छ पी के अघच्छेद-३-जम्बदीप के मधंच्छेद ६ हैं । गाथा२३१ व १११ के अनुसार ऋण राशि का प्रमाण सध्यंगल x ७६८०००-१०००.०४६४x७४१ __ ६४x जगच्छणी प्राप्त होता है । इसमें से पुष्कर द्वीप तक के सूर्यों की संख्या ( पो मा० ३४६ व ३५० को टीका में दी है) २+४+१३+४२४२+१४४+ १५२ + १५६ + १६० + १६४+१६८+ १७२-१३९६ ( देखो गा. ३४६ व ३५० की दीका ) कम करना है।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy