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ज्योतिर्लोकाधिकार
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विशेषार्थ :- (असंख्यात द्वीप समुद्रों के अन्त में स्वयम्भूरमण समुद्र है, जिसमें उत्कृष्ट
गाया । ३२७
पाहता वाला यंत्र है ) वह शंख
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१२ योजन लम्बा है, तथा
उसके वृत्ताकार मुख का व्यास ४ योजन है। वह शंख पूर्ण मुरजाकार नहीं है, अतः उसमें
[]] ऋण तिक्षेषण करना चाहिये, जिससे वह पूर्ण मुरजाकार
हो जाता है। मुख ४
और आयाम १२ को जोड़ ( ४+१२= १६ ) कर आधा ( १६ x ३ ) करने से ८ योजन ( मध्य व्यास )
प्राप्त होता है। इस मुरजाकार शंख के मध्य में से दो खण्ड
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चाहिए। इन दो खण्डों में से एक खण्ड को ग्रहण कर क्षेत्रफल प्राप्त किया जाता है।
करने
मुरजाकार शंख के मध्य में से उपयुक्त को खण्ड करने पर उपयुक्त ऋण ) मी प्रत्येक खंड में
आषा []]] हो जाता है | ( प्रत्येक खण्ड का मुख व भूमि गोलाकार है ) । एक खण्ड के मुख का व्यास
२
४ योजन और भूमि व्यास ८ योजन है । गाथा १७ के अनुसार मुखव्यास ४ योजन के वर्ग ( ४४४ ) १६ योजन को और भूमि व्यास योजन के वर्ग ( ८x८ ) ६४ योजन को १० गुणा करने पर १६० १६० योजन और ६४४१०= ६४० योजन प्राप्त होते हैं। क्षेत्रगुणानुखण्ड द्वारा वर्गमूल
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