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________________ ज्योतिर्लोकाधिकार २७३ विशेषार्थ :- (असंख्यात द्वीप समुद्रों के अन्त में स्वयम्भूरमण समुद्र है, जिसमें उत्कृष्ट गाया । ३२७ पाहता वाला यंत्र है ) वह शंख भू-मा Een १२ योजन लम्बा है, तथा उसके वृत्ताकार मुख का व्यास ४ योजन है। वह शंख पूर्ण मुरजाकार नहीं है, अतः उसमें []] ऋण तिक्षेषण करना चाहिये, जिससे वह पूर्ण मुरजाकार हो जाता है। मुख ४ और आयाम १२ को जोड़ ( ४+१२= १६ ) कर आधा ( १६ x ३ ) करने से ८ योजन ( मध्य व्यास ) प्राप्त होता है। इस मुरजाकार शंख के मध्य में से दो खण्ड A4 चाहिए। इन दो खण्डों में से एक खण्ड को ग्रहण कर क्षेत्रफल प्राप्त किया जाता है। करने मुरजाकार शंख के मध्य में से उपयुक्त को खण्ड करने पर उपयुक्त ऋण ) मी प्रत्येक खंड में आषा []]] हो जाता है | ( प्रत्येक खण्ड का मुख व भूमि गोलाकार है ) । एक खण्ड के मुख का व्यास २ ४ योजन और भूमि व्यास ८ योजन है । गाथा १७ के अनुसार मुखव्यास ४ योजन के वर्ग ( ४४४ ) १६ योजन को और भूमि व्यास योजन के वर्ग ( ८x८ ) ६४ योजन को १० गुणा करने पर १६० १६० योजन और ६४४१०= ६४० योजन प्राप्त होते हैं। क्षेत्रगुणानुखण्ड द्वारा वर्गमूल ३५
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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