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मपनी मात की अचाकर सागरनी नहायक पर बड़ी अनुकम्पा है। इनके माध्यम से संघ में यदि किसी अन्य का प्रकाशन होता है तो वे बड़े स्नेह के साथ उस ग्रन्थ की संभाल करने का भावेश मुझे देते हैं और उनकी माज्ञा का पालन करता हुआ मैं अपने आपको धन्य मानता हूँ। त्रिलोकसार की प्रस्तावना के रूप में कुछ लिख देने का आदेश मुझे प्रात हा अव: उपयुक्त पंक्तियाँ लिखकर अपने को धन्य समझता है। आजकल प्रस्तावनाएँ लम्बी लिखने की परम्परा चल पड़ी है परन्तु पूज्य महाराज का मादेश प्राप्त हुया कि प्रस्तावना अधिक लम्बी न हो इसलिए पथासम्भव संक्षेप किया गया है। जिन विषयों को अधिक स्पष्ट करने की भावना भी, उनको संकेत मान कर छोड़ दिया है।
अन्त में, त्रुटियों के लिए समाप्रार्थी है।
सागर दीपावली २५.१
विनीत पमालाल साहित्याचार्य