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________________ आमुख भारतीय संस्कृति में आर्हत संस्कृतिका प्रमुख स्थान है। इसके दर्शन, सिद्धांत, धर्म और उसके प्रवर्तक तीर्थंकरों तथा उनको परम्पराका महत्त्वपूर्ण अवदान है। आदि तीर्थंकर ऋषभदेवसे लेकर अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर महावीर' और उनके उत्तरवर्ती आचार्योंने अध्यात्म-विद्याका, जिसे उपनिषद्-साहित्य में 'परा विद्या' (उत्कृष्ट विद्या) कहा गया है, सदा उपदेश दिया और भारतकी चेतनाको जागृत एवं ऊर्ध्वमुखी रखा है। आत्माको परमात्माकी ओर ले जाने तथा शाश्वत सुखकी प्राप्तिके लिए उन्होंने अहिंसा, इन्द्रियनिग्रह, त्याग और समाधि (आत्मलीनता) का स्वयं आचारण किया और पश्चात उनका दूसरोंको उपदेश दिया। सम्भवत: इसोस वै अध्यात्म-शिक्षादाता और श्रमण-सस्कृत्तिके प्रतिष्ठाता कहे गये हैं | आज भी उनका मार्गदर्शन निष्कलुष एवं उपादेय माना जाता है। तीर्थकर महावीर इस संस्कृतिके प्रबुद्ध, सबल, प्रभावशाली और अन्तिम प्रचारक थे। उनका दर्शन, सिद्धान्त, धर्म और उनका प्रतिपादक वाङ्मय विपुल मात्रामें आज भी विद्यमान है तथा उसी दिशामें उसका योगदान हो रहा है। ___ अतएव बहुत समयसे अनुभव किया जाता रहा है कि तीर्थकर महावीरका सर्वाङ्गपूर्ण परिचायक ग्रन्य होना चाहिए, जिसके द्वारा सर्वसाधारणको उनके जीवनवृत्त, उपदेश और परम्पराका विशद परिज्ञान हो सके। यद्यपि भगवान् महावीरपर प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दीमें लिखा पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है, पर उससे सर्वसाधारणको जिज्ञासा शान्त नहीं होती। ___ सोभाग्यकी बात है कि राष्ट्रने तीर्थकर यद्धमान-महावीरको निर्वाण-रजसशती राष्ट्रीय स्तरपर मनानेका निश्चय किया है, जो आगामी कात्तिक कृष्णा अमावस्या वीर-निर्वाण संवत् २५०१, दिनाङ्क १३ नवम्बर १९७४ से कात्तिक १. धर्मतीर्थकरेभ्योऽस्तु स्याद्वादिम्यो नमोनमः । ऋषभादि-महावीरान्तम्यः स्वात्मोपलब्धये ॥ भट्टाकलकूदेव, लघीमस्त्रय, मङ्गलपद्य १ । २. मुण्डकोपनिषद् १।१।४१५ । ३. स्वामी समन्तभद, युक्त्यनुशासन का०६। मामुख : १३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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