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अतः धन्यकुमार चरितके रचयिता गुणभद्र और उनके गुरु प्रगुरु भट्टारक नहीं थे ।
बिजौलिया-अभिलेख के रचयिता गुणभद्र भी स्वयंको महामुनि कहते हैं । ११४२ ई० के एक चालुक्य-अभिलेख में किन्हीं वीरसेनके शिष्य एक माणिवयसेनका उल्लेख मिलता है। संभव है उनके कोई शिष्य नेमिसेन रहे हों, जिनके शिष्य बिजोलिया-अभिलेख के रचयिता गुणभद्र हो ।
ई० सन् १३७ में रचित जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदयमें अय्यपायेंने एक पूर्ववर्ती प्रतिष्ठाशास्त्रकारके रूपमें गुणभद्रका उल्लेख किया है। संभव है कि बिजौलियामें मन्दिरप्रतिष्ठा करानेवाले यह आचार्य गुणभद्र ही अय्यपार्य द्वारा अभिप्रेत हों । अतएव धन्यकुमारचरितकी रचना महोबेके चन्देलनरेश परमादिदेवके शासनकालमें की गई होगी। बिजौलिया-अभिलेख के रचयितासे इनकी अभिन्नता मालूम पड़ती है ।
धन्यकुमारचरितकी प्रशस्ति वि० सं० १५०१ की लिखी हुई है। अतः धन्यकुमारचरितका रचनाकाल इसके पूर्व होना चाहिए ।
ललितपुरके पास मदनपुरसे प्राप्त होनेवाले एक अभिलेख में बताया गया है कि ई० सन् ११२२ वि० सं० १२३९ में महोबा के चन्देलवंशी राजा परमादिदेवपर सोमेश्वर के पुत्र पृथ्वीराजने आक्रमण किया था। बहुत संभव है कि इसका राज्य विलासपुर में रहा हो । अतएव धन्यकुमारचरितकी रचनाकाल वि० की १३वीं शती होना चाहिए।
धन्यकुमारचरितकी कथावस्तु ७ परिच्छेदों या सगमें विभक्त है । और इसमें पुण्यपुरुष धन्यकुमारके आख्यानको प्रायः अनुष्टुप छन्दों में लिखा है। पुष्पिकावाक्य में लिखा है
'इति धन्यकुमारचरिते तस्वार्थ भावना फलदर्शके आचार्य श्रीगुणभद्रकृते भव्य-वल्हण - नामाङ्किते धन्यकुमारशालिभद्रयति-सर्वार्थसिद्धिगमनो नाम सप्तमः परिच्छेदः ।
श्रीधरसेन
श्रीधरसेन कोष - साहित्य के रचयिताके रूपमें प्रसिद्ध हैं । इनका विश्व लोचन कोष प्राप्त है। इस कोषका दूसरा नाम मुक्तावली -कोष है। कोषके अन्तमें एक प्रशस्ति दी हुई है, जिससे श्रीधरसेनकी गुरुपरम्पराके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है
६० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा