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वादीश्वर श्रीमूलसंघके शृंगारहार, श्रीवादिचन्द्रके पट्टरूपी उदयाचलपर बालसूर्यके समान त्रिभुवन जनोंको आह्लादित करनेवाले, प्रखरबुद्धि और निपुणता के कारण एक नवीन वादिश्रेष्ठ, सम्पूर्ण पृथ्वीके बजे से नहे भूभागके महान महीपतियोंसे पूजित श्रीमहीचन्द्र भट्टारकके ||३०||
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उनके पट्टस्वरूप उदयगिरिपर ( उदित ) बालभास्कर, विद्वानों की सभाके भूषण, मिथ्यामतके खण्डनमें पण्डित, परमतके वादीरूपी, प्रचण्ड पर्वतको तोड़ने में श्रेष्ठ वज्र के समान, भव्यजनरूपी कुमुदवनको विकसित करनेके लिये चन्द्रमा, धर्मस्वरूप अमृतको बरसाने में मेघतुल्य', लघु शास्त्राके हुंबड कुलके श्रृंगारहार, दिल्ली और गुजरासके सिंहासनाधीश, बलात्करगणकी विरुदावली में विराजमान भट्टारक श्रीमेरुचन्द्र गुरुके ||३१||
सम्पूर्ण सिद्धान्तों द्वारा ज्ञानवान बनाये गये भव्यजनोंके हृदयकमलको विकसित करने में एकमात्र बालसूर्य, दशविष धर्मोके उपदेश-वचनामृतकी वृष्टिसे अनेक भव्यसमूहको तृप्त करनेवाले श्रीमेरुचन्द्र के पट्टका उद्धार करनेमें धीर, श्रीमूलसंघ सरस्वती गच्छ बलात्कारगणकी विरुदावली में विराजमान, भट्टारकोंमें श्रेष्ठ, भट्टारक श्रीजिनचन्द्र गुरुके तपोराज्यके अभ्युदय के लिए भव्यजनों द्वारा किये जानेवाले श्रीजिननायके अभिषेकमें सभी लोग सावधान होवें ||३२||
नन्दिसंघकी पट्टावलिके आचार्योंकी नामावलि (इण्डियन एन्टीक्वेरी के आधारपर )
१. भद्रबाहु द्वितीय ( ४ ), २. गुप्तिगुप्त (२६), ३ माघनन्दी ( ३६ ), ४. जिनचन्द (४०), ५. कुन्दकुन्दाचार्य (४९), ६. उमास्वामी (१०१) ७. लोहाचाम्यं ( १४२), ८. यश: कीर्ति (१५३), ९. यशोनन्दी (२११), १०. देवनन्दी (२५८) ११. जयनन्दी (३०८), १२. गुणनन्दी (३५८), १३. वञ्चनन्दी (३६४), १४. कुमारनन्दी (३८६), १५. लोकचन्द (४२७), १६. प्रभाचन्द्र (४५३), १७. नेमचन्द्र ( ४७८ ), १८ भानुनन्दी (४८७), १९, सिनन्दी (५०८), २०. श्रीवसुनन्दी (५२५), २१. वीरनन्दी (५३१), २२. रत्ननन्दी (५६१), २३. माणिक्यनन्दी (५८५), २४. मेघचन्द्र (६०१), २५ शान्तिकीर्ति (६२७), २६. मेरुकीर्ति
(४४२) ।
ये उपयुक्त छब्बीस आचार्य दक्षिण देशस्थ भट्टिलपुरके पट्टाधीश हुए। २७ महाकीर्ति (६८६), २८. विष्णुनन्दी (७०४), २९. श्रीभूषण (७२६), ३०. शीलचन्द्र (७३५), ३१. श्रीनन्दी (७४९), ३२. देशभूषण (७६५), ३३. अनन्तकोति ( ७६५), ३४. धर्मनन्दी (७८५), ३५. विद्यानन्दी (८०८), ३६. रामचन्द्र (८४०),
पट्टावली: ४४१