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________________ तंत्रवादियोंकी छाती विदीर्ण करनेवाले, रत्नवादियोंका यत्न करनेवाले, सम्पूर्ण निर्दोष विविध विद्यारूपी प्रासाद (भवन) के सूत्रधार, सभी सिद्धान्तोंको जाननेवाले, जैनाचार्यप्रवर, शिष्य श्री सुमतिकीत्ति, अपने और दूसरे देशोंमें प्रसिद्ध शुभमूत्ति श्री रत्नभूषण प्रभूति सूरि, पाठक और साधुओसे सेवित चरण-कमलवाले तथा कलिकालके लिए गौतम गणधर स्वरूप, श्रीमूलसंघ सरस्वतीगच्छके शृङ्गारहार- सदृश गच्छाधिराज भट्टारकोंमें श्रेष्ठ, परम आराध्य और परम पुज्य भट्टारक श्री ज्ञानभूषण गुरुवरके ||२७|| Į तत्पट्टकुमुदवनविकास नविशदसम्पूर्ण पूर्णिमासारशरच्चन्द्रायमानानां कविगमकवादिवाग्मिचतुर्विधविद्वज्जनसभासरोजिनीराजहंससन्निभानां, सारसामुद्रिकशास्त्रोक्तसकललक्षणलक्षितगात्राणां सकलमूलोत्तरगुणगणमणिमण्डितानां चतुविधश्रोसंघहृदयाह्लादक राणां सौजन्यादिगुणरत्नरत्नाकराणां संघाष्टकभारधूरंधराणां, श्रीभद्राय राजगुरुवसुन्धराचार्यमहावादिपितामहसकल विद्वज्जनचक्रवत्तिवकुडी कुडीयमाण (?) परगृहविक्रमादित्यमध्याह्नकल्पवृक्षबलात्कारगणविरुदावलीविराजमान डिल्लीगुर्जरादिदेगसिंहासनाधीश्वराणां श्रीसरस्वतीगच्छ श्रीबलात्कारगणाग्रगण्यपाषाणघटितसरस्वतीबादन श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वयभट्टारकश्रीविद्यानन्दिश्रीमल्लिभूषण श्रीमल्लक्ष्मीचन्द्रश्रीवीरचन्द्रसाम्प्रतिकविद्यमान विजय , राज्ये श्रीज्ञानभूषणसरोजचञ्चरीकश्रोप्रभाचन्द्रगुरूणाम् ॥२८॥ तत्पद्रुकमलनालभास्करपरवादिगजकुम्भस्थल विदारणसिंह- स्वदेशपरदेशप्रसिद्वानां, पंचमिथ्यात्वगिरिशृंगशातन प्रचण्डविद्युद्दण्डानां, जंगमकल्पद्रुमकलिकालगौतमावताररूप लावण्यसौभाग्य भाग्यमण्डित जिनत्र चनकलाकौशल्यविस्मापिताखण्डलमहावादवादीश्वर राजगुरुवसुन्धराचार्यहुं वडकुलश्रृंगारहारभट्टारकःश्रीमद्वादिचन्द्रभट्टारकाणाम् ||२९|| उनके पट्टरूपी कुमुदवनको विकसित करने लिए स्वच्छ शरद्कालीन पूर्णिमाके चन्द्रमाके समान, कवि गमक-वादी - वाग्मिक इन चारों प्रकारके विद्वानोंकी सभारूपी सरोजिनीके राजहंसके सदृश, सामुद्रिक शास्त्रमें कथित सभी शुभ लक्षणोंसे युक्त शरीरवाले, सम्पूर्ण मूलोत्तर गुण-मणियोंसे अलंकृत, चारों प्रकार के संघों हृदयाह्लादक, सौजन्य आदि गुणरत्नोंके सागर, संघाष्टकके भारकी घुरीको धारण करनेवाले, श्रीमान् राय ( ? ) के राजगुरु, भूमंडलके आचार्य, महावादियोंके पितामह अखिल विद्वज्जनोके चक्रवर्ती ( वकुडी कुडीयाण ? )........... शत्रुगृहके लिए विक्रमादित्य, मध्याह्नके लिए कल्पवृक्ष, बलात्कारगणकी विरुदावलीमें विराजमान, दिल्ली, गोर्जर ( गुर्जर ) आदि देशोंके सिंहासनाधीश्वर, श्रीमूलसंघ - श्रीसरस्वतीगच्छ श्रीबलात्कारगण में अग्र पट्टावली ४३९
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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