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मञ्जुल लावण्यपूर्ण शरीरवाले, तीनों विद्याओंके विलाससे त्रिभुवनके विद्वानोंको आनन्दित करनेवाले और चन्द्रकिरणोंके समान स्वच्छ यशःपुञ्जरूपी सुधारत दिशाओ की समुज्ज्य करनेवाले थी कीप्तिं केशवचन्द्र, चारुकीर्त्ति और अभयकीर्त्ति आचार्यवरोंके ॥ १६ ॥
जाग्नज्जिनेन्द्रसिद्धान्तसमशत्रुमित्र प्रेयो रसाकुलित सिद्गजादिसेव्यानां श्रीवसन्तकीर्तिश्रीवादिचन्द्र विशालकीर्त्तिशुभकीर्तियतिराजानाम् ||१७||
राजाधिराज गुणगणविराजमानश्री हम्मीरभूपालपूजितपादपद्मसैद्धान्तिकसंयमसमुद्रचन्द्र श्रीधर्मचन्द्रभट टारकाणाम् ॥१८॥
तत्पदाम्बुजभानुस्याद्वादवादिवादीश्वर श्री रत्न कीर्तिपुण्यभूर्तीनाम् ||१९||
महावादवादीश्वरवादिपितामह् प्रमेयकमलमार्तण्डाद्यनेकग्रन्थविधायक - श्रीमहापुराणस्वयम्भू सप्त (?) भक्तिपरमात्मप्रकाश समय सारादिसूत्रव्याख्यान सज्जं न संजातकोविदस भाकीर्तिभट टारकाणां श्रीमत्प्रभाचन्द्रभट टारकाणाम् ||२गा
अनेकाध्यात्मशास्त्रसरोजपण्डविकासन मार्तण्डमण्डलययाख्यात चारित्रसुविधानसन्तोषिताखण्डलानां श्रीपद्मनन्दिदेवभट टारकाणाम् ॥ २१ ॥
विद्यविद्वज्जन शिखण्डमण्डलीभवत्कायधर (?) कमलयुगलावन्तीदेशप्रतिष्ठोपदेशकसप्तशत-कुटुम्ब - रत्नाकरज्ञातिसुश्रावकस्थापक श्रीदेवेन्द्रकीर्तिशुभकीर्तिभट्टारकाणाम् ||२२||
श्री जिनेन्द्रके सिद्धान्तोंको जाग्रत करनेवाले, शत्रु मित्र और उदासीन सबको प्रीतिरससे वशीभूत करनेवाले एवं सिंह, हाथी आदिसे सेव्य श्रीवसन्तकीर्ति, श्रीवादिचन्द्र, विशालकीर्ति और शुभकीर्ति यतिवरोंके || १७ ||
राजाओं के राजा और गुणोंसे अलंकृत श्री हम्मीरराजा द्वारा पूजितचरणकमलवाले और सिद्धान्तसम्बन्धी संयमरूपी समुद्रको सम्वृद्ध करनेवाले चन्द्रमाके समान श्री धर्मचन्द्र भट्टारकके ||१८||
उनके पदाब्जोंको प्रफुल्लित करनेवाले सूर्यस्वरूप, स्याद्वाद - वादियों के प्रमुख पुण्यमूर्ति रत्नकीर्त्तिके ||१९||
महावाद-वादीश्वर, बादि - पितामह, प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि अनेक ग्रन्थोंके रचयिता, श्री महापुराण, स्वयम्भू, सप्त (?) भक्ति, परमात्मप्रकाश और समयसार आदि सिद्धान्त-ग्रन्थोंकी व्याख्या करनेवाले परम शास्त्रज्ञ सभाकीर्त्ति भट्टारक (?) और श्रोप्रभाचन्द्र भट् टारकके ॥१२०॥
४३४ तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्यपरम्परा