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तत्पट टोदयाचलप्रकाशकरदिवाकरायमाण-श्रीमज्जिनयरवदनविनिर्गतसप्तभड्गीनवनयोय(वचनोपमनयात्मकद्वादशांगाब्धिवर्धनकषोडशकलापरिपूर्णचन्द्रायमानाज्ञानजाड्यमुद्रितभव्यजनचित्तसरससरसीरुहप्रबोधकस्ववचनरचनाडम्बरचारचातुरीचमत्कृतत्सुरगुरुप्रख्यायमाणस्वगणाग्रावलिसिंचनधारायमाणकोटिमुकुटमहावादिराजराजेश्वरकाव्यचक्रवर्तिश्रीमच्छीसमन्तभद्रभट्टारकाणाम् ||४९॥
श्रोमाया गुरुवसु बराचार्यपाहावादवादापितामहविद्वज्जनचक्रवर्तिकतिकडिवाणपरिग्रविक्रमादित्यमध्याह्नकल्पवृक्षसेनगणाग्नगण्यपुष्पकरगच्छविरुदावलिविराजमान दिल्लि(दिल्ली)सिंहासनाधीश्वरछत्रसेनतपोऽभ्युदयसम्रद्धिसिध्यर्थ भव्यजनः क्रियमाणैः जिनेश्वराभिषेकमवधारयन्तु सर्वे जनाः ।। इति सेनपट्टावलो ।।
भाषानुवाद बन्धकारक अष्टकर्मोंसे छुड़ानेमें चतुर शुद्ध और वर्द्धित सिद्धान्तकी शोभासे बोधित नवखण्डोंकी शोभा श्रीमान् नेमिसेन सिद्ध हुए ॥२०॥
भयंकर तापसे तप्त तीनों लोकोंके प्राणियोंके तापको दूर करनेवाले तथा उस तापको हटानेके लिए छत्रके समान श्री छत्रसेनाचार्य हुए ॥२१।।
अत्यधिक प्रकाशमान तथा तीव्र महातपसे युक्त श्री आर्यसेन आचार्य हुए ॥२२॥
अत्यन्त संयमो श्री लोहाचार्य भट्टारक हुए ॥२३॥
नव प्रकारके ब्रह्मचर्यबतके साथ परमेश्वरके ध्यानमें लोन श्री ब्रह्मसेन महातपस्वी हुए ॥२४॥
कमलरूपी भव्यजनोंके लिये सूर्यके समान श्री सूरसेन भट्टारक हुए ॥२५॥
काष्ठासंघके संशयरूपी अन्धकारमें डूबे हुओंको आक्षा प्रदान करनेवाले श्री मूलसंघके उपदेशसे पितृलोकके वनरूपी स्वर्गसे उत्पन्न श्री कमलभद्र भट्टारक हुए ||२६॥ ___ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारिषरूप रत्नत्रयसे युक्त श्री मुनीश्वर देवेन्द्रजी हुए ॥२७॥
विहारनगरमें प्रवेशके समय सारस्कन्धाष्टकके कथनका आल्पाख्यान, वाणबाधाका हरण और गंगाके मध्य पट्टाभिषेक करनेवाले विद्य श्री योगीश्वर कुमारसेन हुए ॥२८॥
पट्टावली: ४२७