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प्रकाशक की लेखनीसे
भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषद्को ओरसे गुरु गोपालदास बरैया-शताब्दी समारोह के प्रसंगको लेकर जब श्री बरैया स्मृति ग्रन्थका प्रकाशन हुआ, तब समाजके प्रबुद्धaiने अत्यधिक प्रसन्नता प्रकट की थी । ग्रन्थका सर्वत्र समादर हुआ और उसको समस्त प्रतियां हाथों-हाथ उठ गयीं । भारतवर्ष के समस्त विश्वविद्यालयोंकी लाइब्रेरियोंके लिए यह संग्रहणीय ग्रन्थ विद्वत्परिषद्की ओर से निःशुल्क भेंट किया गया। उसके उत्तरमें विश्वविद्यालयोंके प्रबन्धकोंने जो धन्यवादपत्र दिये, उनमें उन्होंने उस ग्रन्थ रत्नको प्राप्तकर बड़ा हर्ष प्रकट किया था ।
वर्तमानमें चल रहे श्री १००८ भगवान् महावीरके २५०० व निर्वाणमहोत्सव के उपलक्ष्य में भी विद्वत्परिषद्को कार्यकारिणीने 'तीर्थकर महावीर मौर उनको आचार्य परम्परा' नामक ग्रन्थ प्रकाशित करनेका निश्चय किया और इसके लेखनका भार विद्वत्परिषद् के उपाध्यक्ष ओर बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्रो नेमिचन्द्रजी ज्योतिषाचार्य, एम०ए०, पी-एच० डी०, डी० लिट्०, अध्यक्ष संस्कृतप्राकृत विभाग एच० डी० जैन कालेज आराको दिया गया । सम्माननीय डाक्टर साहबने इस ग्रन्थ के लेखन में चार-पांच वर्षं अकथनीय परिश्रम किया है । परन्तु खेद है कि वे अपनी इस महनीय कृतिको अपने जीवन काल में प्रकाशित न देख सके । गत जनवरी ७४ में उनके दिवंगत होनेका समाचार देशभर में संतस हृदयसे सुना गया ।
यह महान् ग्रन्थ चार भागों में सम्पूर्ण हुआ है। इसके प्रकाशन के लिए विद्वत्परिषद्के पास अर्थकी व्यवस्था नगण्य थी। परन्तु विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष डॉक्टर दरबारीलालजी कोठियाने इसके अग्रिम ग्राहक बनानेकी योजना प्रस्तुत की, जिसे समाजने बड़े उत्साह के साथ स्वीकृत किया। श्री १०८ पूज्य विद्यानन्दजी महाराजने भी अपने शुभाशीर्वादसे इसके प्रकाशनका मार्ग प्रशस्त किया । यह प्रकट करते हुए प्रसन्नता होती है कि इसके सातसी ग्राहक अग्रिम मूल्य देकर बन गये । ग्रन्थके चारों भागोंका मूल्य ८५ ) है । परन्तु अग्रिम ग्राहक बननेवालोंको यह ग्रन्थ ६१ ) में देनेका निर्णय किया गया ।
ग्रन्थका आभ्यन्तर परिचय डॉक्टर दरबारीलालजी कोठिया द्वारा लिखे आमुख तथा ग्रन्थको विषय सूचीसे स्पष्ट है ।
इस ग्रन्थके संपादन और प्रकाशन तथा अर्थके संग्रहमें विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष
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