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थे । इनकी प्रतिभा विलक्षण थी । इसका एक प्रमाण यही है कि इन्होंने किसी . से बिना पढ़े हो कन्नड़ लिपिका अभ्यास कर लिया था।
अब तकके उपलब्ध प्रमाणोंके आधारपर इनका जन्म वि० सं० १७९९७ है और मत्य सं० १८२४ है। टोडरमल जी आरंभसे ही क्रान्तिकारी और धर्मके स्वच्छ स्वरूपको हृदयंगत करनेवाले थे। इनको शिक्षा-दीक्षाके सम्बन्ध में विशेष जानकारी नहीं है, पर इनके गुरुका नाम वंशोधरजी मैनपुरी बतलाया जाता है । वह आगरासे आकर जयपुर में रहने लगे थे और बालकोंको शिक्षा देते थे । टोडरमल बाल्यकालसे ही प्रतिभाशाली थे । अतएव मुरुको भी उन्हें स्वयंबद्ध कहना पड़ा था । वि० स० १८११ फाल्गुन शुक्ला पंचमीको १४-१५ वर्षको अवस्थामें अध्यात्मरसिक मुलतानके भाइयोंके नाम चिट्ठी लिखी थी, जो शामहिटी है। गानस्तानके त्याची विद्वान् पंडित देवीदास मोघाने अपने सिद्धान्तसारसंग्रहवत्रनिका ग्रन्थमें इनका परिचय देते हुए लिखा है___ "सो दिल्ली पढ़िकर बसुवा आय पाछे जयपुर में थोड़ा दिन टाडरमल्लजी महा बुदिमानके पासि शास्त्र सुननेको मिल्या........"सो टोडरमलजीके श्रोता विशेष बुद्धिमान दीवान रतनचन्दजी, अजबरायजी, तिलोकचन्दजी पाटणी, महारामजी, विशेष चरचावान ओसवाल, क्रियावान उदासीन तथा तिलोकचन्द सौगाणी, नयनचन्दजी पाटनी इत्यादि टोडरमलजीके श्रोता विशेष बुद्धिमान तिनके आगे शास्त्रका तो व्याख्यान किया।"
इस उद्धरणसे टोडरमलजीको शास्त्र-प्रवचन शक्ति एवं विद्वता प्रकट होती है। आरा सिद्धान्त भवन में संगृहीत शान्तिनाथपुराणको प्रशस्तिमें टोडरमलजीके सम्बन्धमें जो उल्लेख मिलता है उससे उनके साहित्यिक व्यक्तित्वपर पूरा प्रकाश पड़ता है।।
वासी श्री जयपुर तनौ, टोडरमल्ल किपाल | ता प्रसंग को पाय के, गह्यो सुपंथ विशाल । गोमठसागदिक तने, सिद्धान्तन में सार । प्रवर बोध जिनके उद, महाकवि निरधार । फुनि ताके तट दूसरो, राजमल्ल बुधराज । जुगल मल्ल जब ये जुरे, और मल्ल किह काज । देश ढूंठाहड आदि दे, सम्बोधे बहु देस ।
रचि रचि ग्रन्थ कठिन किये, 'दोडरमल्ल' महेश । माता-पिताको एकमात्र सन्तान होनेके नाते टोडरमल्लजीका बचपन बड़े लाड़-प्यारमें बीता । बालकको व्युत्पन्नमति देखकर इनके माता-पिताने शिक्षाकी २८४ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा