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________________ इन्द्रिय और शरीरके गुणोंको अपना समझ माया-रानीमें इतना आसक्त होना तुम्हें शोभा नहीं देता। जिन क्रोध, मोह और काम-कर्मचारियोंपर तुमने विश्वास कर लिया है वे निश्चय ही तुमको ठग रहे हैं। तुम्हारे चेतन्य-नगरपर उनका अधिकार होनेवाला है, क्योंकि तुमने शरीरके हारनेपर अपनी हार और उसके जीतनेपर जीत समझ ली, दिन-रात मायाके द्वारा निरूपित सांसारिक धन्धोंमें मस्त रहनेसे तुम्हें अपने विश्वासप्राप्त अमात्योंको भी खो देना पड़ेगा। तुमने जो मार्ग अभी ग्रहण किया है वह बिल्कुल अनुचित है । क्या कभी तुमने विचार किया है कि तुम कौन हो? कहाँसे आये हो ? तुम्हें कौन-कौन धोखा दे रहे हैं ? और तुम अपने स्वभावसे किस प्रकार च्युत हो रहे हो? ये द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादि तथा भावकमं राग-द्वेष आदि, जिनपर तुम्हारा अटूट विश्वास हो गया है, तुमसे बिल्कुल भिन्न है । इनका तुमसे कुछ भी तादात्म्यभाव नहीं है। प्रिय चेतन ! क्या तुम राजा होकर दास बनना चाहते हो? इतने चतुर और कलाप्रवीण होकर तुमने यह मूर्खता क्यों को ? सीन लोकके स्वामी होकर मायाको मीठी बातोंमें उलझकर भिखारी बन रहे हो? तुम्हारेत्रासको देखकर में वेदनासे झुलस रही हूँ। तुम्हारी अन्धता मेरे लिये लज्जाकी बात है, अब भी समय है, अवसर हैं, सुयोग है और है विश्वासपात्र अमात्योंका सहारा ! हृदयेश ! अब सावधान होकर अपनी नगरीका शासन करें, जिससे शीघ्न ही मोक्ष-महलपर अधिकार किया जा सके | प्राणनाथ ! राज्य सम्हालते समय तुमने मोक्षमहलको प्राप्त करनेकी प्रतिज्ञा भी को थी । मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि मोक्ष-महलमें रहनेवाली मुक्ति-रानी इस ठगिनी मायासे करोड़ों-गुणी सुन्दरी और हाव-भावप्रवीण है । उसे देखते ही मुग्ध हो जाओगे। प्रमाद और अहंकार दोनों ही तुमको मुक्ति-रमाके साथ विहार करने में बाधा दे रहे हैं। इस प्रकार सुबुद्धिने नानाप्रकारसे चेतनराजाको समझाया। सुबुद्धिको बात मान लेनेपर चेतनराजा अपने विश्वासपात्र अमात्य ज्ञान, दर्शन आदिको सहायतासे मोक्ष महलपर अधिकार करने चल दिया । काव्यको दृष्टिसे इस रचनामें सभी गुण वर्तमान हैं । मानवके विकार और उसको विभिन्न चित्तवृत्तियोंका अत्यन्त सूक्ष्म और सुन्दर विवेचन किया है। यह रचना रसमय होनेके साथ मंगलप्रद है। भावात्मक शैलीमें कविने अपने हृदयकी अनुभूतिको सरलरूपसे अभिव्यक्त किया है। दार्शनिकताके साथ काव्यात्मक शैलीमें सम्बद्ध और प्रवाहपूर्ण भावोंकी अभिव्यञ्जना रोचक हुई है। कवि चेतनराजाको सुव्यवस्थाका विश्लेषण करता हुआ कहता है काया-सो जु नगरीमें चिदानन्द राज करे; माया-सी जु रानी पै मगन बहु भयो है । २६८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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