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२. आध्यात्मिक रूपकाव्य-के अन्तर्गत कविकी चेतनकर्मचरित, षट्अष्टोत्तरी, पंचइन्द्रियसंवाद, मधुबिन्दुकचौपाई, स्वप्नबत्तीसी, द्वादशानुप्रेक्षा आदि रचनाएं प्रमुख हैं । चेतनकर्मचरितमें कुल २९६ पद्य हैं । कल्पना, भावना, नगर, रस, गत शौचाई और रमणीया गादिका समवाय पाया जाता है । भावनाओंके अनुसार मधुर अथवा परुष वर्णोका प्रयोग इस कृति में अपूर्व चमत्कार उत्पन्न कर रहा है । बेकारोंको पात्रकल्पना कर कविने इस चरितकाव्य में आत्माकी श्रेयता और प्राप्तिका मार्ग प्रदर्शित किया है । कुबुद्धि एवं सुद्धि ये दो चेतनकी भार्या हैं। कविने इस काव्यमें प्रमुखरूपसे घेतन और उनकी पत्नियोंके वार्तालाप प्रस्तुत किये हैं । सुबुद्धि चेतन-आत्माको कर्मसंयुक्त अवस्थाको देखकर कहती है-"चेतन, तुम्हारे साथ यह दुष्टोंका संग कहाँसे या गया ? क्या तुम अपना सर्वस्व खोकर भी सजग होने में विलम्ब करोगे? जो व्यक्ति जीवन में प्रमाद करता है, संयमसे दूर रहता है वह अपनी उन्नति नहीं कर नकता।" __ चेतन--"हे महाभागे ! मैं तो इस प्रकार फंस गया हूँ, जिससे इस गहन पंकसे निकलना मुश्किल-सा लग रहा है । मेरा उद्धार किस प्रकार हो, इसकी मुझे जानकारी नहीं।"
सुबुद्धि-"नाथ ! आप अपना उद्धार स्वयं करने में समर्थ हैं। भेदविज्ञानक प्राप्त होते हो आपके समस्त पर-सम्बन्ध विगलित हो जायंगे और आप स्वतंत्र दिखलाई पड़ेंगे।"
कुबुद्धि-"अरी दुष्टा ! क्या बक रही है ? मेरे सामने तेरा इतना बोलनेका साहस ? तू नहीं जानती कि मैं प्रसिद्ध शूरवीर मोहकी पुत्री हूँ ?" __ कविने इस संदर्भ में सुबुद्धि और कुबुद्धिके कलहका सजीव चित्रण किया है। और चेतन द्वारा सुबुद्धिका पक्ष लेनेपर कुबुद्धि रूठ कर अपने पित्ता मोहके यहाँ चली जाती है और मोहको चेतनके प्रति उभारती है। मोह युद्धकी तैयारी कर अपने राग-द्वैधरूपी मंत्रियोंसे साहाय्य प्राप्त करता है और अष्ट कोंको सेना सजाकर सैन्य संचालनका भार मोहनीय कर्मको देता है। दोनों
ओरकी सेनाएं रणभूमिमें एकत्र हो जाती हैं। एक ओर मोहके सेनापतित्वमें काम, क्रोध आदि विकार और अष्ट कर्मोंका सैन्य-दल है। दूसरी ओर ज्ञानके सेनापतित्वमें दर्शन, चरित्र, सुख, वीर्य आदिको सेनाएं उपस्थित है । मोहराज चेतनपर आक्रमण करता है; पर ज्ञानदेव स्वानुभूतिकी सहायतासे विपक्षी दलको परास्त देता है । कविने युद्धका बड़ा ही सजीव वर्णन किया है । निम्न पंक्तियाँ हैं:
२६६ : तीर्थकर महावीर और उनकी बाचाय-परम्परा