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लक्ष्मणदेव कवि लक्ष्मणदेवने 'णेमिणाहवरिउ' की रचना की है। इस ग्रन्थकी सन्धि-पुष्पिकाओंमें कविने अपने आपको रत्नदेवका पुत्र कहा है। आरम्भकी प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि कवि मालवादेशके समृद्ध नगर गोणंदमें रहता था। मह कर उस ननधा और निधारमोन्द्र था | कवि पुरबाडवंशमें उत्पन्न हुआ था। यह अत्यन्त रूपवान, धार्मिक और धनधान्य-सम्पन्न था । कविकी रचनासे यह भी ज्ञात होता है कि उसने पहले व्याकरणग्रन्थकी रचना की थी, जो विद्वानोंका कण्ठहार' थी। कविने प्रशस्तिमें लिखा है
मालवय-विसय अंतरि पहाणु, सुरहरि-भूसिउ णं तिसय-ठाणु। णिवसइ पट्टाणु णामई महंतु, गाणंदु पसिद्ध बहुरिद्धिवतु । आराम-गाम-परिमिउ घणेहि, णं भू-मंडणु किउ णियय-देहि । जहिं सरि-सरवर चउदिसि रु वण्ण, आणदिय-पहियण तंडि विसण्ण ।
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पउरबाल-कुल-कमल-दिवायरु, विणयवसु संघहु मय सायरु । धण-कण पुत्त-अत्य-संपुण्ण उ, आइस रावउ रूच रखण्णउ ।
तेण वि काय गंथ अकसायइ, बंधव अंबएव सुसहायइ । ४।२२ इस प्रशस्तिके अवतरणसे यह स्पष्ट है कि कवि गोणन्दका निवासी था। यह स्थान संभवतः उज्जैन और भेलगाके मध्य होना चाहिए । श्री डॉ० वासुदेवशरण अग्रवालने पाणिनिकालीन भारत' में लिखा है कि महाजनपथ, दक्षिणमें प्रतिष्ठानसे उत्तरमें श्रावस्ती तक जाता था। यह लम्बा पथ भारतका दक्षिण-उत्तर महाजनपथ कहा जाता था। इसपर माहिष्मती, उज्जयिनी,गोनद्द, बिदिशा और कौशाम्बी स्थित थे। हमारा अनुमान है कि यह गोनद्द ही कवि द्वारा उल्लिखत गोणन्द है। कविके अम्बदेव नामका भाई था, जो स्वयं कवि था, जिसने कविको काव्य लिखनेको प्रेरणा दी होगी। स्थितिकाल ___ कविके स्थितिकालके सम्बन्धमें निचिश्त रूपसे कुछ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि कविने स्वयं ग्रन्थरचना-कालका निर्देश नहीं किया है। और न अपनी गर्वावली और पूर्व आचार्योंका उल्लेख ही किया है । अतएव रचनाकालके निर्णयके लिए केवल अनुमान ही शेष रह जाता है । १. जहि पढमु जाउ वायरण मारु, जो बुहिह्मण-कठाहरण चारु ।'
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २०७