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रचना इन्होंने को है ! गह ग्रन्थ पडियाटमें लिखा गया है । कथा छः सन्षियोंमें समाप्त हुई है । और प्रन्यका प्रमाण १२०० श्लोक है। ___ इस प्रन्यकी रचना कविने बलड (अहमदाबाद, गुजरात) नगरमें राजा गोविन्दचन्द्रके सययमें की है ! कविने यह ग्रन्थ साहू पीथाके पुत्र पुरवाडवंशोत्पन्न कुमारको प्रेरणासे लिखा है । सन्धि-पुष्पिकामोंमें आया है"इय सिरिसुकुमालसामि-मणोहरचरिउ, सुंदरयर-गुणरयण-नियर-भरिए बिवुहसिरिसुकइसिरिहर-विरइए, साहुपीथे पुत्र कुमारनामांकिए." इत्यादि
ग्रन्थकी आद्यन्त प्रशस्तिमें साहू पीथाका विस्तृत परिचय दिया गया है। बताया है कि साहू पोथाके पिताका नाम साहू रजग्ग था और माताका नाम गल्हा देवी था । इनके सात भाई थे । महेन्द्र, मनहरु, जाल्हण, सलक्षण, सम्पुष्ण, समुद्रपाल और नेयपाल । पीथाको धर्मपत्नीका नाम सुलक्षणा था। इसीसे कुमारनामक पुत्रका जन्म हुआ। इस कुमारकी प्रेरणासे ही कविने सुकुमालचरिउकी रचना की है ।
यह चरित्त-काव्य वि० सं० १२०८ मार्गशीर्ष कुष्णा तृतीया सोमवारके दिन लिखा गया है । प्रशस्तिमें बताया है---
बारह-सयइ गयइ कय हरिसह, अट्ठोत्तरइ महोलि बरिसइ । कसण-पक्खि आगहो जायए, तिज्ज-दिवसि ससि-वासरि मायइ ।
सुकुमालचरिउमें कुल २२४ फड़वक हैं, । सुकुमालके पूर्वभवके साथ वत्तंमान जीवनका भी चित्रण किया गया हैं । पूर्वजन्ममें यह कौशाम्बी में राजमंत्रीका पुत्र था ! जिनधर्ममें अनुरक्ति होनेके कारण वह संसार विरक्त हो श्रमणधर्ममें दीक्षित हो गया । तपस्याके प्रभावसे अगले जन्ममें उज्जयिनीमें वह सुकुमाल नामका पुत्र हुआ । कवि नख-शिखवर्णनमें भी प्रवीण है । यहाँ परम्परागत उपमानों द्वारा नारी-चित्रणकी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत की जाती हैं
"सहो गरवइहे घरिणि मयणालि, पहय-कामियण-मण-गहियावलि । दंत-पंति-णिजिय-मुत्तालि, णं मयहो करी वाणावलि । सयलतेउरमज्झे पहाणी, उछ सरासण मणि सम्माणी। जहि वयणकमलहो नउ पुज्जइ, चंदु वि अज्जु विवट्टइ खिज्जइ । कंकेल्ली-पल्लव-सम पाणिहिं, कलकल हंठि वीणणिह वाणिहिं । णियसोहागपरज्जिय गोरिहि, विज्जाहर-सुर-मण-पणचोरिहे ।"
कुछ विद्वान् इन तीनों श्रीधरोंको एक मानते है । पर मेरे विचारसे ये तीनों भिन्न हैं। १५० : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा