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तथा चारों कषायों का सेवन करनेवाले व्यक्तियोंके कथानक आये हैं; ४५ वीं, ४६ वीं, ४७ वीं, ४८ वीं, ४९ वीं और ५० वीं सन्धियोंमें परीषहोंपर विजय करने वाले शीलसेन्द्र, सुकुमाल, सुकोशल, राजकुमार, सनत्कुमारचक्रवर्ती, भद्रबाहु, aiघोषमुनि, वृषभसेनमुनि अग्निपुत्र अभयघोष, विद्युच्चरमुनि, चिलास्पुत्र, धन्यकुमार, चाणक्यमुनि और ऋषभसेनमुनिको कथाएँ वर्णित हैं । ५१ वीं सन्धिमें प्रत्याख्यान के अखण्ड पालनपर श्रीपालकथा, प्रायश्वित्तपर राजपुत्रकथा, आहारगृद्धिपर शालिसिक्थकथा, भोजनकी लोलुपतापर सुभौम चक्रवर्तीकथा और संसारको अनिष्टतापर धनदेवकथा आई है । ५२ वीं सन्धि में कर्मफलको प्रबलतापर सुभोगनूपकथा, व्रत भंगपर धर्मसिंहमुनिकथा, ऋषभसेनमुनिकथा और आत्मघात द्वारा संघरक्षापर जयसेननृपकथा आई है । ५३ वीं सन्धिमें समाधिमरणपर शकटालमुनिको कथा अंकित है । इस कथाग्रंथ नगर, देश, ग्राम आदिके वर्णन के साथ यथास्थान अलंकारोंका भी प्रयोग किया गया है ।
श्रीधर प्रथम
अपभ्रंश - साहित्य में श्रीधर और विष श्रीधर नामके कई विद्वानोंका परिचय प्राप्त होता है । श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने संस्कृत और अपभ्रंशके सात कवियोंका परिचय दिया है।" श्रीधरके पूर्व 'विबुध' विशेषण भी प्राप्त होता है । श्री हरिवंश को छड़ने 'पासणाहचरिङ', 'सुकुमालचरिज' और 'भविसयत्तचरिउ' ग्रन्थोंका रचयिता इन्हीं श्रीधरको माना है । पर पं० परमानन्दजी 'पासणाहचरिउ' के रचयिता श्रीधरको भविसयत्तचरिउ' और सुकुमाल चरिउके रचयिताओंसे भिन्न मानते हैं। श्री डॉ० देवेन्द्रकुमारशास्त्रीने भो भविसयत्तचरिउके रचयिता श्रीधर या विबुध श्रीवरको उक्त ग्रन्थोंके रचयिताओंसे भिन्न बतलाया है । वस्तुतः 'पासणाहचरिउ का रचयिता श्रीधर, भविसयत्तचरिउके रचयितासे तो भिन्न है ही, पर वह सुकुमालचरिउके रचयितासे भी भिन्न है । इन तीनों ग्रन्थोंके रचयिता तीन श्रीधर हैं, एक श्रीधर नहीं ।
'पासणाहचरिउ' के अन्त में जो प्रशस्ति अंकित है उससे कविके जीवनवृत्तपर निम्न लिखित प्रकाश पड़ता है
१. अनेकान्त वर्ष ८, किरण १२, पृष्ठ ४६२ ।
२. अपभ्रंश-साहित्य, भारती साहित्य-मन्दिर, दिल्ली, पृ० २१० ।
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