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किया | घरणेन्द्र कुपित हुआ और उसने सबको भस्म कर दिया, केवल भगीरथ और भीम ही शेष बचे । चर्तीको हुआ और बहु भगीरथको राज्य देकर दीक्षित हो गया। सगर राजाका समधी सहस्राक्ष था । उसने अपने पिताकी हत्या करनेवाले पुण्यमेघ पर चढ़ाई की और उसे मार डाला । उसका पुत्र तोयदवाहन किसी प्रकार भाग कर द्वित्तीय तीर्थंकर अजितनाथके समयशरण में पहुँचा। सहस्राक्ष भी वहाँ आया। पर समवशरण में प्रवेश करते हो उसका क्रोध नष्ट हो गया । इसी तोयदवाहनने लंकानगरीकी नींव डाली और यहींसे राक्षसवंश आरंभ हुआ ।
हुआ ।
सगर के बाद ६४वीं पीढ़ीमें कीर्तिधवल अयोध्या के राज्यपर आसीन उसका साला श्रीकण्ठ सपत्नीक वहां आया । कीर्तिधवलने प्रसन्न होकर उसे वानरद्वीप दे दिया | श्रीकण्ठने पहाड़ीपर किष्कपुर बसाया । तदनन्तर अमरप्रभु राजा हुआ । उसने लंकाको राजकुमारीसे विवाह किया। नववधू जब ससुराल में आयी, तो आँगनमें बन्दरोंके सजीव चित्र देखकर भयभीत हो गयी । इसपर अमरप्रभु चित्रकारपर अप्रसन्न हो उठे । मन्त्रियोंने उसे बताया कि वानरोंसे उसके परिवारका पुराना सम्बन्ध चला आ रहा है। उसे तोड़ना ठीक नहीं । उसने बानरको अपना राजचिह्न मान लिया । लंका में राक्षसवंशको समृद्धि हुईं और क्रमश: मालीके भाई सुमालीका पुत्र रत्नश्रव - राजा हुआ । उसके तीन पुत्र थे- रावण, विभीषण और कुम्भकरण 1 एक लड़की भी थी चन्द्रनखा | रावण अत्यन्त शूरवीर और पराक्रमी था। मन्दोदरी के सिवा उसकी छह हजार रानियाँ थीं । रावण किष्कपुरके राजा बालिको हराना चाहता था । पर उसे उल्टी हार खानी पड़ी। बालि अपने अनुज सुग्रीवको राज्य देकर तप करने चला गया । रावण बड़ा जिनभक्त था । उसने अपने पराक्रमसे यम इन्द्र, वरुण आदि राजाओंको परास्त किया था ।
अयोध्याकाण्ड में अयोध्याके राजाओंका वर्णन आया है। इस नगरीमें ऋषभदेवके वंशले समयानुसार अनेक राजा हुए और सबने दिगम्बर दोक्षा लेकर तपस्या की और मोक्ष प्राप्त किया । इस वंशके राजा रघुके अरण्य नामक पुत्र हुआ । इसकी रानीका नाम पृथ्वीमति था । इस दम्पतिके दो पुत्र हुएअनन्तरथ और दशरथ राजा अरण्य अपने बड़े पुत्र सहित संसारसे विरक्त हो तपस्या करने चला गया । तथा अयोध्याका शासनभार दशरथको मिला । एक दिन दशरथकी सभा में नारद मुनि आये। उन्होंने कहा कि रावणने किसी निमित्तज्ञानीसे यह जान लिया है कि दशरथपुत्र और जनकपुत्री के निमित्तसे उसकी मृत्यु होगी । अतः उसने विभीषणको आप दोनोंको मारने के लिये नियुक्त
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ९९