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ग्रन्थकारोंको भूल जायें। विद्यानन्द और अनन्तवीर्यके ग्रन्थोंके उल्लेखोंके आधार पर दोनोंका समय ईसाकी नवीं शताब्दीसे पहले नहीं जाता । अतः उनके स्मरणकी प्रभावाप्रका स्मरण नवमी शताब्दीक पूर्वाद्धकी रचना आदिपुराणमें नहीं किया जा सकता।"
पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्रोने अन्य तौक आधारपर भी डॉ० पाठक आदिके मतका खण्डन किया है और प्रभाचन्द्रका समय ई० सन् ९५० से १०२० निर्धारित किया है।
प्रभाचन्द्रने पहले प्रमेयकमलमार्तण्डकी रचना करके ही न्यायकुमुदचन्द्रकी रचना की है। प्रमेयकमलमार्तण्डकी अन्तिम प्रशस्तिमें 'भोजदेवराज्ये' उल्लिखित मिलता है, पर न्यायकुमुदचन्द्रकी पुष्पिकामें 'श्रीजयसिंहदेवराज्ये' पद उल्लिखित है । अतएव श्रीप्रभाचन्द्रका समय जयसिंहदेवका राज्यकाल सन् १०६५ तक माना जा सकता है । यदि प्रभाचन्द्रकी ८५ वर्षकी आयु हो, तो उनकी पूर्वावधि ई. सन् ९८० सिद्ध होती है। आचार्य जुगुलकिशोर मुख्तार और पण्डित कैलाशचन्द्र जी शास्त्रो प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकूमदचन्द्रके अन्तमें पाये जाने वाले 'श्रीभोजदेवराज्ये' और 'श्रीजयसिंहदेवराज्ये' आदि प्रशस्तिलेखोंको स्वयं प्रभाचन्द्रका नहीं मानते। पर न्यायाचार्य पण्डित महेन्द्रकुमारजी उक्त प्रशस्ति-लेखोंको प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र के रचयिता प्रभाचन्द्रके हो मानते हैं। __ प्रभाचन्द्रने यापनीयसंघाग्रणी शाकटायनाचार्यके केलिमुक्ति और स्त्रीमुक्ति प्रकरणोंकी कुछ कारिकारिकाओंको पूर्वपक्षके रूपमें उद्धृत किया है। शाकदायनाचार्यका समय अमोघवर्षका राज्यकाल { ई. सन् ८१४-८७७) नवम शती है । अतः प्रभाचन्द्रका समय ई० सन् १०० से पहले नहीं माना जा सकता।
आचार्य देवसेनने अपने 'दर्शनसार' ग्रन्थके बाद 'भावसंग्रह बनाया है। इसकी रचना ई० ९४० के आस-पास हुई होगी। प्रमेयकमलमानण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रमें देवसेनकी 'नोकम्मकम्महारो' गाथा उद्धृत मिलती है। अतएव प्रभाचन्द्रका ममय ई० सन् ९४० के बाद होना चाहिये । श्रीधरकी न्यायकन्दलीको छाया भी प्रभाचन्द्र के ग्रन्थोंपर दिखलाई पड़ती है। श्रीधरने कन्दली टीका ई० सन् ९९१ में समाप्त की थी। अतः प्रभाचन्द्रकी पूर्वावधि ९९० के लगभग होनी चाहिये।
शिलालेखके आधारपर प्रभाचन्द्रके सधर्मा गोपनन्दि बताये गये हैं। पहले बेलगोल' के एक अभिलेख ( अभिलेख सं० ४९२ ) में होय्सलनरेश, एरेयङ्ग
१. न्यायकुमुदचन्द्र, प्रथम भाग. माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, बम्बई, सन् १९३८ प्रस्तावना,
पृ. ११८॥
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४९