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मार्ग भी नहीं है । भोगी और योगीका मार्ग एक कैसे हो सकता है। तभी तो गीतामें कहा है
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागति संयमी ।
यस्यां जाति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥ 'सब प्राणियोंके लिए जो रात है उसमें संयमी जागता है और जिसमें प्राणी जागते हैं वह आत्मदर्शी मुनिको रात है।'
इस प्रकार भोगी संसारसे योगीके दिन-रात भिन्न होते हैं । संयमी महाबीरने भी आत्म-साधनाके द्वारा कार्तिक कृष्णा अमावस्याके प्रातः सूर्योदयसे पहले निर्वाण-लाभ किया। नोंके उल्लेखानुनार उसीने उपलक्षमें दीपमालिकाका आयोजन हुआ और उनके निर्वाण-लाभको पच्चीस सौ वर्ष पूर्ण हुए। उमाके उपलक्षमें विश्वमें महोत्सवका आयोजन किया गया है।
उसीके स्मृतिमें 'तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा' नामक यह वृहत्काय अन्य चार खण्डों में प्रकाशित हो रहा है । इसमें भगवान महावीर और उनके बाद पच्चीस-गौ वर्षों में हुए विविध साहित्यकारोंका परिचयादि उनको साहित्य-साधनाका मूल्यांकन करते हुए विद्वान् लेखकने निबद्ध निया है। उन्होंने इस ग्रन्थके लेखनमें कितना श्रम किया, यह तो इस ग्रन्थको आद्योपान्त पढ़नेवाले ही जान सकेंगे। मेरे जानतेमें प्रात विपयसे सम्बद्ध कोई ग्रन्थ, या लेखादि उनकी दष्टिमे ओझल नहीं रहा । तभी तो इस अपनी कृतिको समाप्त करने के पश्चात् ही वे स्वर्गत हो गये और इसे प्रकाशमें लानेक लिए उनके अभिन्न सम्या डॉ० कोठियाने कितना श्रम किया है, इसे वे दन नहीं सके । 'भगवान महावीर और उनको आचार्यपरम्परा में लेखकने अपना जोवन उत्सर्ग करके जो श्रद्धाके सुमन चढ़ाये हैं उनका मूल्यांकन करनेकी क्षमता इन पंक्तियोंके लेखकमें नहीं है । वह तो इतना ही कह सकता है कि आचार्य नेमिचन्द्र शास्त्रीने अपनी इस कृतिके द्वारा स्वयं अपनेको भी उस परम्परामें सम्मिलित कर लिया है। ___ उनको इस अध्ययनपूर्ण कृतिमें अनेक विचारणीय ऐतिहासिक प्रसंग आये हैं। भगवान महावीरके समय, माता-पिता, जन्मस्थान आदिके विषय में तो कोई मतभेद नहीं है। किन्तु उनके निर्वाणस्थानके सम्बन्धम कुछ समयसे विवाद् खड़ा हो गया है । मध्यमा पावामें निर्माण हआ, यह सर्वसम्मत उल्लेख है। तदनुसार राजगृहीके पास पावा स्थानको ही निर्माणभूमिक रूपमे माना जाता है। वहाँ एक तालाबके मध्य में विशाल मन्दिरम उनके चरण
प्राक् कथन : ११