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न्यायशास्त्रके पारंगत और अनेक शास्त्रोंके मर्मज्ञ थे। सिद्धिविनिश्चय-टीकासे अवगत होता है कि इनका दर्शन-शास्त्रीय अध्ययन बहत व्यापक और सर्चतोमुखी था। वैदिक संहिताओं, उपनिषद्, उनके भाष्य एवं वात्तिक आदिका भी इन्होंने गहरा अध्ययन किया था। न्याय-वैशेषिक सांस्य-योग, मीमांसा, चार्वाक और बौद्धदर्शनके ये असाधारण पण्डित थे। सिद्धिविनिश्चयटीकाके पुष्पिकापाया इनक गरुका नाम रोचभत जान पड़ता है। इन्होंने अपनेको उनका 'पादोपजीवी' बतलाया है। इसके अतिरिक्त इनके विषयमें और कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती। अनन्तवीर्य नामके अनेक विद्वान्
साहित्य और शिलालेखोसे ज्ञात होता है कि अनन्तवीर्य नामके अनेक विद्वान् हो गये हैं। एक अनन्तवीर्य वे हैं, जिन्होंने आचार्य माणिक्यनन्दिके परीक्षामखपर अपनी परीक्षामुखवृत्ति, जिसे 'प्रमेयरलमाला' कहा जाता है और जो प्रकाशित है, लिखी है। ये अनन्नवीर्य लघु अनन्तवीर्य कहे जाते हैं और जो प्रभाचन्द्रके उत्तरवर्ती तथा १२वीं शतीके विद्वान् हैं ।
एक वे अनन्तवीर्य हैं, जिनका पेग्गूरके कन्नड़ शिलालेखमें वीरसेन सिद्धान्तदेवके प्रशिष्य और गोणसेन पण्डित भट्टारकके शिष्यके रूपमें उल्लेख है। ई० सन् ९७७ के दानलेखके अनुसार ये श्रीवेलगोलके निवासी थे। इन्हें वेहोरेगरेके राजा श्रीमत् रक्कसने पेरग्गदर तथा नयी खाईका दान किया था !
एक अनन्तवीर्यका निर्देश मरोंल ( बीजापुर बम्बई ) के अभिलेखमें आया है। यह अभिलेख चालुक्य जयसिंह द्वितीय और जगदेकमल्ल प्रथम ई० सन् १०२४ के समयका हुआ है। इसमें कमलदेव भट्टारक, प्रभाचन्द्र और अनन्तवीर्यका उल्लेख आया है। ये अनन्तवीयं समस्त शास्त्रोंके विशेषतः जनदर्शनके पारगामी थे। अनन्तवीर्यके शिष्य गुणकीतिसिद्धान्त भट्टारक और देवकीर्ति पण्डित थे। । एक अनन्तवीर्यका उलेख अकलंकसूत्रके वृत्तिकर्ताके रूपमें हुम्मचकी पञ्चवस्तिके आंगनके एक पाषाणलेखमें आया है। ये अरुङ्गलान्चय नन्दिसंघकी आचार्योंकी परम्परामें हुए हैं । यह अभिलेख ई० सन् १०७७ का है। इसी लेख में आगे कुमारसेनदेव, मोनिदेव और विमलचन्द्र भट्टारकका निर्देश है।
१. बैन शिलालेख संग्रह, भाग २, पृ० १९९। २. 'श्रीबेलगोलनिवासिमलम्प श्रीवीरसेनसिवान्तदेववरशिष्यर् श्रीगोणसेनपण्डितभट्टारक
वरशिष्यर् श्रीमान् अनन्तवीर्यप्यङ्गल · " जैन शिलालेख० भाग १ । ३. बम्बई कर्नाटक एसक्रीप्शन, जिल्द , भाग १, नं० ६१। ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३९