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________________ भट टारक चन्द्रकीतिं किस स्थानके पट्टधर थे, इसका निर्णय करना कठिन है। पर इतना निश्चित है कि ये ईडर शाखाके भट्टारक थे। स्थितिकाल __ श्रीभुषणके पश्चात् चन्द्रकीर्तिभट्टारक हुए। इन्होंने संवत् १६५४ में देवगिरि पर पार्श्वनाथ पुराणकी रचना की। वि० सं० १६८१ में इन्होंने एक पद्मावतीकी मूर्ति स्थापित की थी। चन्द्रकीर्तिने दक्षिणकी यात्रा करते समय कावेरीके तीर पर नरसिंह पट्टनमें कृष्णभट्टको बादमें पराजित किया। इस समय चारुकीर्ति भट्टारक भी उपस्थित थे। चिद्घनने चन्द्रकीर्तिकी पर्याप्त प्रशंसा की है । इस प्रशंसासे अवगत होता है कि १७वीं शतीमें चन्द्रकीर्ति बहुत ही लब्धप्रतिष्ठ और यशस्वी भट्टारक थे। लिखा है दक्षिणमें राजत वादिवत्रांकुश चंद्रसुकीर्ति ये चिद्घनरी । दिगंबरमें यह सोभित वादिजु मानत पंडित चिद्घन' री ॥ रचनाएं चन्द्रकीर्तिने पार्श्वनाथपुराण, वृषभदेवपुराण, पाश्र्वनाथपूजा, नन्दीश्वरपूजा, ज्येजि वरपूजा, कोऽशफारमपूजा, सरस्वतीपूजा, जिनचौबीसी, पाण्डवपुराण और गुरुपूजा ये रचनाएँ लिखी हैं। पाश्वपुराण १५ सर्गोमें विभक्त है। इसकी श्लोक संख्या २७१५ है । वृषभदेवपुराणमें तीर्थङ्कर वृषभदेवकी कथा २९ स!में वर्णित है । अन्य रचनाएँ भाषा, भाव और विचारको दृष्टिसे साधारण है। ब्रह्मा ज्ञानसागर काष्ठासंघ, नन्दीतटगच्छमें विश्वसेनके पट टशिष्य विद्याभूषण हुए हैं। इन्होंने वि० सं० १६०४ में तथा वि० सं० १६३६ में दो पार्श्वनाथमूर्तियाँ स्थापित की हैं । विद्याभूषणके पट्टपर श्रीभूषणभट्टारक हुए। सं० १६३४ में श्वेताम्बरोंसे इनका विवाद हुआ। जिसके परिणामस्वरूप श्वेताम्बरोंको देश १. श्रीमद्देवगिरी मनोहरपुरे श्रीपार्श्वनाथालये । वग्धीपुरसैकमेयइह व श्रीविक्रमांकेसरे ।। सप्तम्यां गुरुवासरे श्रवणभे वैशाखमासे सिते । पाश्र्वाधीशपुराणमुत्तममिदं पर्याप्त मेवोत्तरम् ।। -पार्श्वनाथपुराणप्रशस्ति २. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ७१० । ३. वही, लेखांक ७२० । ४. वही, लेखांक ७१९ । ४४२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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