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५५, मास १ दिवस ४, जाति सेठी, पट्ट अजमेर" ॥
तीसरे धर्मकीर्ति सिंहकीर्तिके शिष्य है । बलात्कारगण अटेर शाखाका प्रारम्भ सिंहकीर्ति से होता है । ये सिंहकीति मट्टारक जिनचन्द्रके शिष्य थे । इन्होंने वि०सं० १५२०की आषाढ़ शुक्ला सप्तमीको एक महावीरमूर्ति प्रतिष्ठापित की थी। सिंहकीर्तिके बाद धर्मकीर्ति और उनके पश्चात् शीलभूषण भट्टारक हुए ।
चतुर्थ धर्मकीर्ति ललितकीर्तिके शिष्य हैं। ये बलात्कारगण जेरहट शाखाके आचार्य हैं। इस शाखाका प्रारम्भ भट्टारक त्रिभुवनकीन होता है । ये भट्टारक देवेन्द्रकीतिकं शिष्य थे । त्रिभुवनकीतिके पश्चात् क्रमशः सहस्रकीर्ति, पद्मनन्दि, यशः कीर्ति, ललितकीति और धर्मकीर्ति भट्टारक हुए । धर्मकीतिने संवत् १६४५ माघ शुक्ला पञ्चमीको एक मूर्ति संवत् १६६९ चैत्र पूर्णिमाको एक चन्द्रप्रभुमूर्ति तथा एक पार्श्वनाथमूर्ति और संवत् १६७२ वैशाख शुक्ला पञ्चमीको एक नन्दीश्वरमूर्ति स्थापित की। अभिलेख निम्न प्रकार है"सं० (१६) ४५ माघ सुदि ५ श्रीमूलसंघे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ० यशकीर्तिपट्टे भ० ललितकीति पट्टे भ० श्रीधर्मकीर्ति उपदेशात् पौरपट्टे छितिरा मूर गोहिलगोत्र साधु दीनू भार्या ॥"
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"संवत् १६६९ चैत सुद १५ रवौ मूलसंघे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ० यशोकीर्ति तत्पटुट्टे भ० ललितकीति तत्पट्टे भ० धर्मकीर्ति उपदेशात्॥"
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"संवत् १६६९ चैत सुदी १५ रवी भ० ललितकीर्ति भ० धर्मकीर्ति तदुपदेशात् सा० पदारथ भार्या जिया पुत्र दो खेमकरण पमायेता नित्यं नमति । "
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" संवत् १६७१ वर्षे वैसाख सुदि ५ मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ० यशकीर्ति तत्पट्टे भ० ललितकीति तत्पट्टे भ० धर्मकीति उपदेशात् पौरपट्टे सा० उदयचंदे भार्या उदयगिरेन्द्र प्रतिष्ठा प्रसिद्ध ||"
यही धर्मकीति ग्रन्थरचयिता होनेके कारण इस प्रस्तुत सन्दर्भमें उल्लेख्य हैं । ये मूलसंघ सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगणके आचार्य थे। इनकी दो रचनाएँ उपलब्ध हैं | प्रथम रचना पद्मपुराण वि०सं० १६६८ में सावन महीनेकी तृतीया शनिवार के दिन मालव देशमें पूर्ण की गयी है। और हरिवंशपुराण वि०
१. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक २८० ।
२. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक २२५-२२८ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४३३