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सुल्तान गयासुद्दीनके राज्यकालमें दमोवा देशके जोरहट नगरके महाखान और भोजखानके समयमें लिखी गयी है। ये महास्नान और भोजखान जोरहट नगरके सूबेदार जान पड़ते हैं। इतिहाससे स्पष्ट है कि सन् १४०६ में मालवाके सुबेदार दिलवरखाको उसके पुत्र अलफखाने विष देकर मार डाला था और मालवाको स्वतन्त्र उद्घोषित कर स्वयं राजा बन गया था । इसकी उपाधि हशंगशाह थी। इसने माण्डवगढ़को सुदृढ़ कर अपनी राजधानी बनाया था। उसीके वंशमें शाह गयासुद्दीन हुआ। जिसने माण्डवगढ़से मालबाका राज्य वि० सं० १५२६ से १५५५ तक किया। इसके पुत्रका नाम नसीरशाह था । भट्टारक श्रुतकीर्तिने जेरहट नगरके नेमिनाथचैत्यालयमें हरिवंशपुराणको रचना वि० सं० १५५२ माघ कृष्णा पञ्चमी सोमबारके दिन हस्तनक्षत्रमें की है।
संवतविक्कमसेण-नरेसह, साहिगयासुपयावअसेसई । णयरजेरहटजिणहरु चंगउ, णेमिणाहजिबिंबु अभंगउ। गंथसउण्णु तत्त्थ इह जायउ, चविहसंसूणिसुणिअणुरायउ । माकिण्हपंचमिससिबारई, हत्थणखत्तसमत्तुगुणालई ।
ग' राउणु गाउ दिन, कमरामि मित्त जं उत्तउ । भ. श्रुतकीतिने वि०सं०१५५२में धर्मपरीक्षाकी भी रचना की है। 'परमेष्ठी प्रकाशसार'की रचना भी वि० सं० १५५३ को श्रावण मास पञ्चमीके दिन हुई है। इस समय गयासुद्दीनका राज्य था और उसका पुत्र राज्यकार्यमें अनुराग रखता आ । पूज्यराज नामके वणिक उस समय नसीरशाहके मन्त्री थे।
दहपणसयतेवण गयवासइ, पुण विक्कमणिवसंवच्छ रहे तह सावण मासह गुरुपंचमि,
सहु गथु पुण्णु तय सहस तहे ।। योगसार ग्रन्थकी प्रशस्तिसे भी अवगत होता है कि इस ग्रन्थको रचना भी वि० सं० १५५२ मार्गशीर्ष शुक्ल पक्षमें हुई है। अतएव यह स्पष्ट है कि भट्टारक श्रुतकीतिका समय वि० सं० की १६वीं शती है | रचनाएँ
भ० श्रुतकीत्ति बहुश्रुतज्ञ विद्वान् हैं। इनके द्वारा लिखित निम्नलिखित कृतियाँ उपलब्ध हैं१. अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ११-१२, पृ० २७९ । २. वही, पृ. २८० ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४३१