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________________ से मर्मको बातें कर प्रतिज्ञा की कि वह सुदर्शनको वशीभूत करेगी । अष्टभ सन्धिमें अभया रानांकी विरहवेदनाका वर्णन है । अभयाकी दयनीय अवस्था देखकर उसको पण्डिता नामक सखीने बहुत समझाया, पर रानीका हठ न छूटा और अन्ततः विवश होकर पण्डिताको अभयाकी कामवासना तृप्त करानेके लिए वचनबद्ध होना पड़ा । पण्डिताने एक कुटिल चाल चलो। उसने कुम्हारसे मनुष्याकृतिके मिट्टी के सात पुतले बनवाये । वह प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक कमसे एक-एक पुतला ढँककर अपने साथ लाती, प्रतोलीके द्वारपर द्वारपालसे झगड़कर पुतला फोड़ डालती और द्वारपालको रानीका भय दिखाकर आगे लिए उसे चुप करा देती । इस प्रकार पण्डिताने महलके सातों द्वारपालोंको अपने अधीन कर अन्तःपुरका प्रवेश निर्वाध बना दिया। अमोके दिन सुदर्शन श्मशान में कायोत्सर्ग करनेके लिए गया । पण्डिताने उसके पास जाकर पहले तो उसे ध्यानच्युत एवं प्रलोभित करनेका प्रयत्न किया, पर जब उसे इस असप्रयास में सफलता न मिली, तो वह सुदर्शनको उठाकर राजमहल में ले गयी । रानो अभधाने सुदर्शनको विचलित करनेके लिए अनेक प्रयास किये, पर सुदर्शन सुमेरुकी तरह अडिग रहा। जब प्रयास करते-करते ममस्त रात्रि व्यतीत हो गयी, तो रानीने दूसरा कपटजाल रचा और सुदर्शन पर शीलभंग करनेका आरोप लगाया । राजाने बिना सोचे-समझे सेठ सुदर्शनको प्राणदण्डका आदेश दिया । राजपुरुष उसे पकड़कर श्मशान ले गये और उसकी हत्याका प्रयास करने लगे। सुदर्शनके धर्मंध्यानके प्रभावसे एक व्यन्तरदेवने हत्यारों को स्तम्भित कर दिया और सुदर्शनके प्राणोंकी रक्षा की । नवम सन्धिमें व्यन्तरदेवका राजाकी सेना एवं राजाके साथ भयानक युद्ध होनेका वर्णन आया है। राजाको अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी और व्यन्तरदेवकी आदेशानुसार उसे सुदर्शनके शरण में जाना पड़ा। सुदर्शनने उसे क्षमा कर दिया | दशम सन्धिमें जीवन संकटसे मुक्त होकर जिनमन्दिर में गया और वहां उसने विमलवाहन मुनिसे अपने भवान्तर पूछे। मुनिने उसके क्रमशः व्याघ्र नामक क्रूर भील, श्वान तथा सुभग गोपाल इन तीन भवोंका वर्णन किया । इसी प्रसंग में णमोकार मन्त्र के प्रभावका भी कथन किया। साथ हो मनोरमाकी पूर्वभवावलि भी बतलायी। मुनिका धर्मोपदेश सुनकर सुदर्शनने महाव्रत धारण कर लिये । एकादश सन्धिमें मुनि सुदर्शनके ऊपर आये हुए उपसर्गीका वर्णन है । अभय के जीव व्यन्तरीने सुदर्शनको नाना प्रकारसे विचलित करनेका प्रयास fear | एक व्यन्तरने आकर उनकी रक्षा की। प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापशेषकाचार्य : २९३
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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