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________________ हुआ है। नायक धीरोदात्त और तिनाया तोड़ा। कनिने रोदनुभूतिमें सहायक मानवीय व्यापारों और उनके परस्पर सम्मिलित संघर्षोंका वर्णन किया है। कथावस्तुका अन्तिम लक्ष्य ऐहिक सिद्धि है। कविने भरत बाक्यमें काम और धर्म दोनों पुरुषार्थो की प्राप्तिकी कामना की है। २. मैथिलीकल्याणम् --यह पांच अंकोंका नाटक है। इसमें बताया गया है कि वसंतोत्सबके अवसरपर सीता उपवनमें कामदेवके मन्दिर के निकट झला शलते ममय रामके अपूर्व सौन्दर्यका दर्शन कर अभिभूत हो जाती हैं और राम भी सीताके दर्शनसे प्रेमविह्वल होते हैं। माधवी बनमें पुन: सीता और रामका साक्षात्कार होता है। इस प्रकार कविने स्वयं बरके पूर्व राम और सीताके मिलनाकर्षणका सुन्दर चित्रण किया है। स्वयम्वरमें बचावतं धनुषके तोड़ने की शर्त रखो जाती है 1 अनेक राजा धनुषपर अपनी शक्ति आजमाते हैं. पर उनके प्रयत्न विफल हो जाते हैं। राम सहजभावसे आकर धनुषकी प्रत्यञ्चाको चढ़ाते हैं और धनुष टूट जाता है। जनक रामके साथ सीताका विवाह कर ३. अजनापवनंजय-इसमें सात अंक हैं। विद्याधरराजा प्रहलादके पुत्र पवगंजय एवं विद्याधरकुमारी अजनाके बिवाहका वर्णन है। महेन्द्रपुरके राजमहलमें अञ्जना अपनी सखी वसंतमाला और मधुलिका तथा मालतो नामक परिचारिकाओं के साथ प्रवेश करती है। उनकी चर्चा का विषय है निकट भविष्यमें होनेवाला स्वयंवर तथा उसका परिणाम | पवनंजय छिपकर अपने मित्र विदषकके साथ राजमहलमें सस्त्रियोंके वार्तालापको सुनता है और उसे यह मिथ्या विश्वास हो जाता है कि अजना उससे वास्तविक प्रेम नहीं करतो । अतः विवाहके पश्चात् अञ्जनाका परित्याग कर देता है। वरुणके विरुद्ध रावणको सामरिक सहायता देनेके लिए पवनंजय जाता है। वह वहाँ कुमुदवतीके तीरपर चक्रवाकीको कामाभिभूत देख अञ्जनाकी स्मतिसे आकुलित हो जाता है । फलतः वह विमान द्वारा आदित्यपुरमें आता है और अंजनाके भवन में रात्रि व्यतीत कर प्रातःकाल होनेके पूर्व ही समरभूमिको चला जाता है। अजनाके प्रकट होते हुए गर्भाचल्लोंको देखकर, उसपर दुराचारिणी होनेका अभियोग लगाया जाता है। अजनाको घरसे निर्वासित कर दिया जाता है। कूमार जव विजयसे लौटकर आता है, तो अञ्जनाको न पाकर बहुत दुःखी होता है और उसकी तलाशमें निकल पञ्जता है। किसी प्रकार दोनोंका मिलन होता है। ४. सुभद्रानाटिका-इस नाटिकामें चार अंक हैं। महारानी बेलासी महा प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २८१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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